चश्मों (ऐनक) का इतिहास | हम में से कुछ लोगों के लिए बिना चश्मे के जीवन की कल्पना करना लगभग असंभव ही है। एक समय था जब यह चश्में सिर्फ अमीर लोगों के नसीब में ही होते थे। आँखों पर बड़े शौक से चश्मे पहनने वाले लोगों की आज दुनिया में कोई कमी नहीं है। (चश्मों (ऐनक) का इतिहास )

परंतु दुर्भाग्यपूर्ण बात यह है कि की इन लोगों को यह भी नहीं पता कि आखिर यह चश्मे पहली बार अस्तित्व में कैसे आए? किसने पहली बार चश्मे का आविष्कार किया होगा? 

यह भी पढ़े :दुनिया की 7 सबसे पुरानी चट्टानें और पत्थर | OLDEST ROCKS

जिन्हें इतिहास अच्छा लगता है उनके लिए इतिहास दुनिया का सबसे दिलचस्प विषय है और इसी दिलचस्प विषय के कुछ सबसे दिलचस्प राज ऐसे है जिन्हें आप बड़ी दिलचस्पी से जानना चाहेंगे। 

आज किसी व्यक्ति को चश्मा पहने देखना उतना ही आम है जितना कि आप सर्दियो में लोगों को टोपा या स्वेटर पहने हुए देखते हैं। चश्मा हमारी जरुरत के सबसे महत्त्वपूर्ण जरूरतों और आविष्कारों में से एक है। पर सच यह है कि आज चश्मे जैसे दिखते उनका आकार, डिजाइन इत्यादि , वैसे वह बिल्कुल भी नहीं थे।  (चश्मों (ऐनक) का इतिहास )

यह भी पढ़े :दरवाजों का इतिहास : समय के साथ एक सफर 2021

एक पूर्ण आँखों की रोशनी और द्रष्टि को ठीक करने वाले चश्मे को बनाने के लिए सदियों का समय लगा था । कई बड़े बड़े वैज्ञानिकों और अविष्कार कर्ताओं द्वारा किए गए कई सुधारों के बाद आप इस तरह के रंगीन चश्मों का लुफ्त ले पा रहे है। 

क्या आपने विचार किया है कि दुनिया का पहला चश्मा कैसा रहा होगा? या चश्मे जैसी तकनीक का खयाल किस तरह दिमाग में आया होगा? 

आज हम आपको अवगत करायेंगे चश्मे के ऐसे इतिहास से जिसने दुनिया भर के लोगों को पढ़ने, ड्राइव करने, सर्जरी करने और बंदूक का सटीक रूप से निशाने लगाने की अनुमति दी है।  (चश्मों (ऐनक) का इतिहास )

यह भी पढ़े :दुनिया के 9 सबसे पुराने फोन | DUNIYA KE SABSE PURANE PHONE

चश्में की उत्पत्ति 

चश्मों (ऐनक) का इतिहास

बात काँच से देखनी की है तो चश्मे का इतिहास हमे पहली शताब्दी तक खींच कर ले जा सकता है क्योंकि philosopher Nero ने कहा था कि उन्होंने ग्लैडीएटोरियल लड़ाई (gladiatorial battles) के दौरान अपनी आंखों को धूप से बचाने के लिए हरे रंग के पत्थर का इस्तेमाल किया।  तो हम यह कह सकते है कि यह धूप के चश्मे का आविष्कार था!

आँखों की रोशनी को सुधारने के लिए बनाए गए पहले चश्मे का जिक्र सन 1200 में मिलता है जब किसी चीज को बड़े रूप में देखने के लिए काँच में पानी भरकर देखा जाता था।  (चश्मों (ऐनक) का इतिहास )

यह भी पढ़े :दुनिया के 7 सबसे पुराने (रेस्तरां) रेस्टोरेंट्स | DUNIYA KE SABSE PURANE RESTAURANTS

13वीं सदी में, वेनिस में रॉक क्रिस्टल (पत्थर के टुकड़ों) का इस्तेमाल “रीडिंग स्टोन्स” यानी कि पढ़ने वाले पत्थर के रूप में किया जाता था।  पाठक को बेहतर देखने में मदद करने के लिए इन पत्थरों को बस किताबों के पन्नों पर रख दिया जाता था।  

इसी शताब्दी के दौरान भी Luigi Zecchin  ने एक चश्मे के इतिहास में महत्वपूर्ण खोज की: क्रिस्टल से बने लेंस को उनकी आंखों के सामने रखने से उनकी दृष्टि में सुधार हुआ। इस तरह से पहला आँखों में सुधार करने वाला चश्मा पैदा हुआ! (चश्मों (ऐनक) का इतिहास )

1284 में चश्में के नाम पर सिर्फ नजदीक की दृष्टि के लिए गोल काँच के लेंस मिलते थे जिन्हें  “roidi da ogli” कहते थे। 

यह भी पढ़े :दुनिया के 10 सबसे पुराने स्कूल | Duniya Ke Sabse Purane School | OLDEST SCHOOLS

प्रारंभिक चश्मों का इतिहास 

चश्मों (ऐनक) का इतिहास

हालांकि पहला आँखों में पहनने योग्य चश्में का अविष्कार किसने किया यह अबतक अज्ञात ही है। लेकिन पहली बार कांच का इस्तेमाल छोटे अक्षरों को देखने के रोमन लोगों द्वारा किया गया था।

 उन्होंने काँच के एक गोल (spherical) टुकड़े से ऐसे ग्लास बनाए जिनसे छोटे अक्षरों को आसानी से पढ़ा जा सकता था। रोमन लोगों द्वारा चश्मे का रूप सम्भवतः  (4 BC -65AD) में विकसित हुआ था।  (चश्मों (ऐनक) का इतिहास )

यह भी पढ़े :दुनिया के 9 सबसे पुराने जीवित पौधे | OLDEST LIVING PLANTS IN THE WORLD

आँखों में पहनने योग्य पहला चश्मा 13 बी शताब्दी में इटली में सामने आया। यह चश्मे इतने पेचीदा थे इन्हें चमड़े में या जानवरों के सींगों या लकड़ी के फ्रेम में लगे हुए थे जिनका उपयोग बहुत ही मुश्किल से किया जाता था। 

इस तरह के चश्मों का उपयोग मुख्यतः भिक्षु लोगों के द्वारा किया जाता था, उसके बाद धीरे-धीरे यह चश्मे लोकप्रिय होने लगे और फिर इनका विकास शरू होने लगा इसके बाद इनकी तकनीक और बनावट में भी सुधार लाने की कोशिश होती रहीं ।  (चश्मों (ऐनक) का इतिहास )

इस तरह के चश्मे होने के सबूत के रूप में  पुरानी कलाकृतियां, पेंटिंग है जिसमें आसानी से देखा जा सकता है कि इस तरह के चश्मे अस्तित्व में थे।  (चश्मों (ऐनक) का इतिहास )

कलाकृतियां दर्शाती है कि चश्मों का उपयोग किस तरह किया जाता था या उन्हें ईस्तेमाल करने की तकनीक क्या थी सिर्फ यही नहीं उन्हें देखने से यह भी पता चलता है कि प्राचीन चश्मों का उपयोग किस तरह के कामों में किया जाता था।  (चश्मों (ऐनक) का इतिहास )

काँच का काम करने वाले लोगों ने अलग अलग मोटाई के अलग लेंस का निर्माण किया काँच के इन लेंस से अलग अलग द्रष्टि प्रभाव दिखता था। और जैसे जैसे इटालियन चश्मे की लोकप्रियता बड़ती गयी यह पूरे यूरोप में फैल गए। 

यह भी पढ़े :दुनिया के 8 सबसे पुराने कछुए | Duniya ke Sabse Purane kachuye

लेकिन उस समय तक चश्मा दुनिया की सबसे महंगी वस्तुओ में से एक था इसलिए हर किसी के लिए यह उपलब्ध नहीं थे सिर्फ अमीर लोग ही चश्मों को लुफ्त उठा पाते थे। (चश्मों (ऐनक) का इतिहास )

 इतिहास के उस दौर में चश्मे इंसान की अमीरी और समृद्धी का प्रतीक होते थे हालांकि यह स्थिति आज भी सामन्य सी ही लगती है परंतु उस समय यह बात बहुत ही सटीकता से लागू  होती थी। 

काफ़ी हद तक यह कहा जा सकता है कि चश्मे की यह प्रकृति कुछ समय के लिए ठहर सी गयी थी। इतिहासकार मानते है कि चश्मे की यह पुरानी तकनीक संभवतः नई शताब्दियों तक वैसा ही रहीं होगी।

 इसके पीछे का तर्क यह था कि चश्में की अगली स्पष्ट ऐतिहासिक तस्वीर 1700 के दशक के दौरान आती है।  जैसे जैसे चश्में का विस्तार हुआ चश्में की कानो तक पहनने के लिए सख्त डंडियों का उपयोग हुआ और फिर चश्मा पूरी तरह “hand free” (हाथों से मुक्त) हो गया । (चश्मों (ऐनक) का इतिहास )

आधुनिक चश्मे की सबसे समृद्ध तकनीक के चश्मे को बेंजामिन मार्टिन द्वारा बनाया गया और कहा जा सकता है कि उन्होंने ही चश्मे को सही मायने में हल्का और बेहतर बनाया। उन्होंने अपने  “मार्टिन मार्जिन”  चश्मे में हल्के काँच का उपयोग किया और 

यह भी पढ़े :दुनिया की 10 सबसे पुरानी कार | Duniya ki Sabse purani Car

चश्में का विकास 

साल दर साल चश्मों के आकार और तकनीक में सुधार होता जा रहा था और इसी कड़ी में एक महत्वपूर्ण योगदान दिया बेंजामिन फ्रैंकलिन ने 1784 द्विफोकल (डुअल फोकस) लेंस का आविष्कार किया और इसकी बहुमुखी प्रतिभा को चश्मे के इतिहास में जोड़ा।  (चश्मों (ऐनक) का इतिहास )

यह चश्मे ऐसे थे जिनसे एक व्यक्ति को दो के बजाय एक सिर्फ एक जोड़ी चश्मे से काम चला सकता था क्योंकि इन चश्मों में दूर और पास दोनों ही दृष्टि को देखने के लिए दोनों लेंस लगाए गए थे।  और उस समय के लिए यह एक बड़ी उपलब्धी थी। 

चश्मों (ऐनक) का इतिहास

चश्मे के विकास के इसी दौर में एक और तरह के चश्मे चले जिन्हें “कैंची चश्मा” कहा जाता था क्योंकि यह चश्मे जेब में रखे जा सकते थे और इनकी बनावट जेब में रखते समय काफी कुछ कैची जैसी थी इसलिए इनका यह नाम पढ़ गया।  (चश्मों (ऐनक) का इतिहास )

यह भी पढ़े :10 ऐसे अवसर जब रिकॉर्ड की गई दुनिया की सबसे ज्यादा भीड़ | Duniya Ki Sabse Jayda Bheed

1800 के दौरान चश्मों का काफी विकास हो चुका था और अब चश्मे बनाने का काम आसान और अधिक किफायती हो गया था। 1900 के आसपास से चश्मा लोगों को स्टाइलिश दिखाने वाली अहम चीजों में शामिल होने लगा। अब कई तरह के रंग बिरंगे चश्मे बनाए जाने लगे थे ताकि लोगों की पोशाकों के साथ चश्मों का सही मेल हो सके।  (चश्मों (ऐनक) का इतिहास )

19 बी सदी के आते आते भी चश्मा आम और गरीब लोगों की पहुँच से बाहर ही था। लेकिन अब औद्योगिक क्रांति बहुत दूर नहीं थी और फिर अचानक से कंपनी बनी और इनका उत्पादन बड़ी संख्या में होने लगा और फिर चश्में आम होते चले गए। 

1950 के आते आते चश्मों को लोकप्रियता देने में फिल्मी सितारों का बड़ा महत्व था क्योंकि लोग फ़िल्में देखते थे और ये सितारें चश्मों को शान से पहनते थे।  (चश्मों (ऐनक) का इतिहास )

आज के समय में चश्में का फैशन में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। शायद ही कोई ऐसा जिसके पास चश्मा ना हो। 

यह भी पढ़े :कुआँ : कुएँ का इतिहास | दुनिया का सबसे पुराना कुआँ

By Nihal chauhan

मैं Nihal Chauhan एक ऐसी सोच का संरक्षण कर रहा हू, जिसमें मेरे देश का विकास है। में इस हिंदुस्तान की संतान हू और मेरा कर्तव्य है कि में मेरे देश में रहने वाले सभी हिंदुस्तानियों को जागरूक करू और हिंदी भाषा को मजबूत करू। आपके सहयोग की मुझे और हिंदुस्तान को जरुरत है कृपया हमसे जुड़ कर हमे शेयर करके और प्रचार करके देश का और हिंदी भाषा का सहयोग करे।

0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest
0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments
0
Would love your thoughts, please comment.x
()
x