Bhagavad Gita Ka Saar श्रीमद्भागवत गीता का सार प्राचीन काल में हुयी महाभारतकालीन घटना से है, जो सनातन धर्म की सबसे पवित्र और मुख्य किताब मानी जाती है। यह पवित्र किताब गीता है, जिसके सत्य और पवित्रता का प्रतीक माना जाता है। गीता का सार महाभारत युद्ध के दौरान भगवान श्री कृष्ण के मुखारविंद से अर्जुन को सुनाया गया था। 

Bhagavad-Gita का भीष्म पर्व अध्याय को गीता के सार के रूप में देखा और जाना जाता है। यदि आप इस घटना से वाकिफ़ नहीं है तो हम आपको इसके विस्तार में ले जाते है तभी आप गीता की आत्मा को आत्मसात कर पायेंगे। 

गीता शब्द का मूल अर्थ है गीत और भगवद शब्द का अर्थ है ईश्वर, सही मायने में भगवद गीता ‘ईश्वर का गीत’ है।  ऐसा माना जाता है कि भगवान कृष्ण ने मूल रूप से ‘भगवद गीता’ बोली थी।  ‘भगवद गीता 700 संस्कृत छंदों से बनी है, जो 18 अध्यायों में समाहित हैं, जिन्हें तीन खंडों में विभाजित किया गया है, जिनमें से प्रत्येक में छह अध्याय हैं।  वे कर्म योग क्रिया के योग हैं।  भक्तियोग तुम भक्ति हो और जनयोग ज्ञानयोग हो।(Bhagavad Gita Ka Saar )

मित्रों सनातन धर्म के अनुसार समय को चार युगों में बांटा गया है, सतयुग, त्रेता युग, द्वापर युग और कलयुग जिसमें अभी हम जी रहे हैं। ऐसी मान्यता है कि जब हर युग में जब पापी, राक्षसों और राक्षसी बुद्धी वाले लोग बढ़ जाएगे और चारों ओर अशांति, दुख और धर्म का नाश होने लगेगा तब बुराई का अंत करने स्वयँ भगवान का जन्म होगा, जो बिल्कुल आप मनुष्य की तरह पैदा होंगे और बुराई का अंत करके धर्म की स्थापना करेगे। 

महाभारत का युद्ध द्वापर युग में हुआ और उस समय ईश्वर ने अपना जन्म देवकीनंदन कृष्ण के रूप में लिया। उन्होंने जन्म लेके कई राक्षसों का अंत किया और अंत में धर्म के सबसे युद्ध के निर्णायक बने जो पांडवों और कौरवों ले बीच हुआ जिसमें पांडवों ने धर्म की रक्षा के लिए पापी कौरवों से युद्ध किया। (Bhagavad Gita Ka Saar )

श्री कृष्ण द्वारा अर्जुन को गीता उपदेश – 

Bhagavad Gita Ka Saar

इस युद्ध की खास बात यह थी कि यह युद्ध एक ही परिवार में हुआ और श्री कृष्ण जो पांडवों और कौरवों के रिश्तेदार ही थे इसीलिये उन्होंने अपनी सेना दुर्योधन (कौरवों का सबसे बड़ा लड़का) को दे दी और खुद अर्जुन के रथ के सारथी बन गए। 

श्री कृष्ण जब युद्ध के पहले दिन अपना रथ लेकर कुरुक्षेत्र में आए तो अर्जुन का सामर्थ्य खत्म हो गया क्योंकि जब अर्जुन ने देखा कि उसके सामने उसके भाई, गुरु, और उसके अपने लोग है और अर्जुन के हाथ से उनका गांडीव गिर गया, अर्जुन पूरी तरह से हार गए थे वह युद्ध नहीं करना चाहते थे। (Bhagavad Gita Ka Saar )

लेकिन उसी समय श्री कृष्ण ने उन्हें अपना असली रूप दिखाया और गीता उपदेश दिया उन्होंने कहा पार्थ! तुम किससे डर रहे हो, संसार में मौजूद हर चीज़ में मेरा ही रूप विधमान है। उन्होंने कहा अर्जुन सत्य मोह माया के परे है। तुम्हारा जन्म धर्म की स्थापना करने के लिए हुआ है, और तुम अपना कर्म करो। 

बाद में अर्जुन ढाढस बंधने लगा और वह पूरी ऊर्जा ये युद्ध के लिए तैयार हो गए। हालांकि कहा जाता है जिस समय युद्धभूमि में श्री कृष्ण ने अपना रुद्र रूप दिखाया उस समय इतनी रोशनी हुयीं की अर्जुन के अलावा उनका यह रूप कोई ना देख पाया। पूरे युद्ध के दौरान अर्जुन कई बार अपना आपा खो देते थे तब श्री कृष्ण ने उन्हें सहारा दिया बिना श्री कृष्ण के धर्म की स्थापना सम्भव नहीं थीं। (Bhagavad Gita Ka Saar )

उस समय श्री कृष्ण ने उन्हें जीवन के कुछ मुख्य देह बताएं जिन्हें हम नीचे दिए गए बिंदुओं पर विस्तार से समझेंगे। 

इसी प्रकार गीता इस युग से पिछले युग की घटनाओ का व्रतांत बताती है, और बताती है कि स्वयं ईश्वर ने इंसान को क्या उपदेश दिए। 

उस समय दिए गए गीता के उपदेश आज भी मानव जीवन को उद्देश्य देते है। जो इंसान गीता को अपना लेता है उसका जीवन खुशियो से भर जाता है और दुनिया का कोई भी दुख उसे दुखी नहीं के सकता। (Bhagavad Gita Ka Saar )

श्रीमद्भागवत गीता क्या है? – What Is Bhagavad Gita 

भगवद गीता सनातनियों (हिन्दुओ) का सबसे महत्वपूर्ण ग्रंथ है। यह ग्रंथ महाभारतकालीन घटनाओं का समायोजन है। गीता महाभारत के नाम से जाने जाने बाली भारतीय महाकाव्य का एक हिस्सा है। माना जाता है कि गीता मूल रूप से संस्कृत में लिखी गई, और इसकी रचना 5वीं और दूसरी शताब्दी ईसा पूर्व के बीच हुई थी।

दुनिया भर में यह किताब या ग्रंथ गीता के नाम से भी प्रख्यात है। इसे जिंदगी जीने के उच्च उसूलों और हिन्दू धर्म के परिचयात्मक पाठ के रूप में उपयोग किया जाता है। हालांकि गीता स्वयं में एक बहुत बड़ा ग्रंथ है लेकिन इसका वह हिस्सा जहाँ श्री कृष्ण ने अर्जुन को जीवन का उद्देश्य और आत्मा की सार्थकता समझाई। यह हिस्सा गीता सार के नाम से प्रख्यात है और इसे पूरी गीता का निचोड़ माना जाता है। कृष्ण बताते हैं कि अर्जुन को एक योद्धा के रूप में अपना धर्म (कर्तव्य) को पूरा करना चाहिए।(Bhagavad Gita Ka Saar )

अपनी व्याख्या में, कृष्ण कुल योग के चार शास्त्रीय विद्यालयों की चर्चा करते हैं; 

  • ज्ञान (ज्ञान का मार्ग)
  • भक्ति (भक्ति का मार्ग)
  • कर्म (कार्रवाई का मार्ग)
  • राजा (ध्यान का मार्ग)

श्रीमद्भागवत गीता इन्हीं योगों की व्याख्या करती है और उन्हें परिभाषित करती है। 

आइये अब हम विस्तार से समझते है कि 

श्रीमद्भागवत गीता का सार – Bhagavad Gita Ka Saar 

दुनिया का सबसे बड़ा धर्म युद्ध होने से पहले देवकी नंदन कृष्ण द्वारा जो उपदेश अर्जुन को दिए गए वही गीता है। गीता में 700 श्लोक और 18 अध्याय है। जिनमें से गीता का मुख्य सार हम आपसे साझा करने जा रहे है। (Bhagavad Gita Ka Saar )

मैं और तुम कौन है? 

जब श्री कृष्ण अर्जुन को उपदेश दे रहे थे तब श्री कृष्ण ने अर्जुन से कहा कि –

 “यह ज्ञान जो में तुम्हें देने जा रहा हूँ सर्वप्रथम मैंने इसे सूर्य देव को दिया था” । 

इसी बात पर अर्जुन के मन में एक सवाल उठता है वह श्री कृष्ण से कहते है – 

“आपका जन्म तो अभी कुछ समय पहले हुआ है और सूर्य तो देव है, वह तो ब्रह्मांड के परिचालक है फिर आप उन्हें कैसे ज्ञान दे सकते हैं? “

अर्जुन की इस अबोधता को देखकर श्री कृष्ण प्रसन्न होकर बोले कि हे! पार्थ तुम और हम कभी अलग नहीं थे, मेरा और तुम्हारा कई बार जन्म हो चुका है लेकिन तुम्हें याद नहीं पर मुझे याद है। हमारे शरीर के भीतर आत्मा अमर है वह कभी नहीं मरती 

धर्म की रक्षा हेतु अवतार – 

जब अर्जुन को इस बात ज्ञान हुआ कि श्री कृष्ण ने कई जन्म लिए है तो उनके मन में फिर सवाल आया और उन्होंने पूछा प्रभु आप जन्म क्यों लेते है आप तो संसार में मौजूद हर वस्तु में है? 

इस पर श्री कृष्ण बोले – 

यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत।अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम् ॥४-७॥

अर्थात्‌ :

श्री कृष्ण कहते हैं कि – हे अर्जुन जब भी धर्म कमजोर होता है और समाज में संसार में धर्म की हानि होती है तब मेरा निर्माण अपने आप होने लगता है और मेरा जन्म हो जाता है। (Bhagavad Gita Ka Saar )

अर्जुन पूछना चाहते थे कि क्यों? तब श्री कृष्ण कहते है – 

परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम् ।धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे ॥४-८॥

अर्थात्‌ – 

जब भी पृथ्वी पर पाप का स्तर बढ़ जाएगा तब में लूँगा और मेरा जन्म साधुओं की रक्षा करने के लिए पापियों का नाश करने के लिए हुआ है। जब तक कि में पृथ्वी पर पाप और पुण्य के स्तर को बराबर करके धर्म की स्थापना नहीं करता तब तक मेरा अवतार पृथ्वी पर रहता है। (Bhagavad Gita Ka Saar )

उन्होंने कहा यह युद्ध धर्म के लिए है, अर्जुन तुम इसके माध्यम हो, तुम योद्धा हो और तुम्हें अपने कर्म का पालन करना होगा। 

कर्म का मह्त्व और चिंता – 

तो वा प्राप्यसि स्वर्गम्, जित्वा वा भोक्ष्यसे महिम्। तस्मात् उत्तिष्ठ कौन्तेय युद्धाय कृतनिश्चय:॥

जब अर्जुन अपने गांडीव को नीचे रख देते है तब वह सांसारिक कष्टों को महसूस कर रहे थे, वह मोह में फंस गए थे, उन्हें लगा कि वह अपने ही भाइयों को गुरुओं से कैसे युद्ध कर सकता है। अर्जुन की इस दुविधा को कृष्ण समझ चुके थे और उन्होंने अर्जुन को उपदेश देते हुए कहा कि – पार्थ! मेरा और तुम्हारा बल्कि दुनिया के हर प्राणी का जन्म अपने कर्म को करने के लिए हुआ है। (Bhagavad Gita Ka Saar )

संसार का हर जीव  कर्म को करके ही मोक्ष की प्राप्ति करता है जो व्यक्ति अपने कर्म से बचता है, या दूर भागता है, वह हमेशा नर्क का भोग करता है। कर्महीन व्यक्ति संसार पर अतरिक्त बोझ के सिवाय कुछ नहीं। इसलिए हे पार्थ! तुम अपना कर्म करो, फल की इच्छा मत करो। तुम्हारा धर्म बताता है कि तुम्हें हर उस व्यक्ति से लड़ना होगा जो बुराई है का संगरक्षक है। 

अर्जुन कौरवों की इतनी विशाल सेना देखकर संकोची थे और कृष्ण ने इस बात को भांप लिया और बोले हे अर्जुन अपने कर्म को का निर्वहन करने पर कोई चिंता नहीं करनी चाहिए। यदि तुम यह युद्ध हार भी गए तो तुम वीरगति को प्राप्त होगे और स्वर्ग के अधिकारी बनोगे और यदि जीत गये तो भी दुनिया में तुम्हारी जय जय करेगी। 

गीता में चिंता की तुलना चिता से की गई है – कहा गया है चिंता और चिता में सिर्फ एक बिंदु का फर्क है। व्यक्ति को चिंता मुक्त होकर अपने कर्म करना चाहिए। धर्म को ध्यान में रखकर चलने वाला कर्मशील व्यक्ति स्वर्ग का भागीदारी होता है। (Bhagavad Gita Ka Saar )

तुम्हें किसकी चिंता है? 

Bhagavad Gita Ka Saar

तुमनें क्या पैदा किया, जो तुम्हें लगता है कि नष्ट हो गया?  तुम इस दुनिया में कुछ नहीं लाए, जो कुछ तुम्हारे पास है, तुम्हें यहीं से मिला है।जो कुछ तुमने दिया है, वही तुम्हें दिया है। तुमने जो कुछ भी लिया, तुमने भगवान से लिया।  तुमने जो कुछ दिया, तुमने उसे दिया।  तुम खाली हाथ आए हो, खाली हाथ चले जाओगे। जो गूजर गया उसकी चिंता व्यर्थ है, जो आने वाला है उसकी चिंता भी व्यर्थ है जो चल रहा है उसमे रहो। 

प्रभु कहते है कि तू व्यर्थ सोचता है आज तेरा है, कल किसी और का था परसों किसी और का होगा। तू क्यों इस जंजाल में फसा है, तू माया और मोह में अपने दुःखों को बड़ा रहा है, अपना कर्म कर, मेरी तरफ आ तुझे मोक्ष मिलेगा। (Bhagavad Gita Ka Saar )

अपनी भावनाओं को नियंत्रित करो – 

क्रोधाद्भवति संमोह: संमोहात्स्मृतिविभ्रम:। स्मृतिभ्रंशाद्बुद्धिनाशो बुद्धिनाशात्प्रणश्यति॥

(दूसरा अध्याय, श्लोक संख्या 63)

श्री कृष्ण उपदेश देते है कि यदि मनुष्य अपनी भावनाओं को नियंत्रित कर ले तो वह सब कुछ जीत सकता है। वे कहते है क्रोध आपको मति को हर लेता है, और जो व्यक्ति धैर्यवान है वही उत्तम पुरुष है और प्रभु की कृपा उनपर होती है। क्रोध करने वाला इंसान मतिभ्रम का शिकार हो जाता है उसकी स्मृति चली जाती है और वह विनाश की तरफ चला जाता है। 

पूरी गीता का एक बड़ा हिस्सा भावनाओ पर आधारित है, और वहां जोर दिया गया है कि मनुष्य को अपनी भावनाओं को नियंत्रित करना चाहिए। गीता आपको शांति देने के कुछ ऐसे मार्ग बताती है जिससे आप चिंता मुक्त हो जाते हैं। और आपको आपके जीवन के मूल्य लक्ष्य नजर आने लगते है। (Bhagavad Gita Ka Saar )

जाग्रत मुनि ने हर उस व्यक्ति को महान कहा है जो फल की चिंता किए बिना सिर्फ अपना कर्म करता है और पूरा ध्यान अपने कर्म की तरफ एकाग्र कर लेता है। ऐसे व्यक्ति सिर्फ सफलता प्राप्त करते है। 

भावनाओ को नियंत्रित करने के लिए गीता क्या कहती है? 

गीता के अनुसार यदि इंसान के लिए सुख दुख सभी प्रकार के अनुभव उसकी भावनाओ पर आधारित होते है।जो इंसान अपनी भावनाओं पर नियंत्रण कर लेता है वह लाख दुखों में भी संसार का सबसे संपूर्ण और सुखी व्यक्ति बन जाता है और जो व्यक्ति अपना धैर्य खो कर अपनी भावनाओं को नियंत्रित नहीं कर पाता, वह दुनिया के सभी सुख प्राप्त करके भी दुखी और हीनभाव का शिकार होता है। (Bhagavad Gita Ka Saar )

गीता के अनुसार अपनी भावनाओं को नियंत्रित करने के लिए – 

  • सात्विक भोजन अपनाएं (हरि सब्जियाँ, दूध, फल इत्यादि) 
  • मदिरा पान, अन्य व्यसनों का त्याग करे 
  • ब्रह्म मुहूर्त में उठने का प्रयास करें 
  • ध्यान और योग करें 
  • तामसी (मास, मछली आदि) और राजस भोजन का त्याग करे (अधिक तेल वाले भोजन, जंक फूड, अधिक बसा (फैट) वाले भोजन इत्यादि) 
  • रात्रि में जागने से बचें 
  • दिन के उजाले में आए 
Bhagavad Gita Ka Saar

गीता के अनुसार आत्मा क्या है?  – 

नैनं छिद्रन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावक: । न चैनं क्लेदयन्त्यापो न शोषयति मारुत ॥

अर्थात्‌ – 

आत्मा को किसी हथियार से नष्ट किया जा सकता है ना ही किसी शस्त्र से काटा जा सकता है। आत्मा को अग्नि से जलाया भी नहीं जा सकता ना ही इसे पानी में डुबोया जा सकता है। यानी कि आत्मा को आग में जलाकर और पानी में डुबोकर भी नष्ट नहीं किया जा सकता। आत्मा को हवा भी सूखा सकती है ना उड़ा सकती है। (Bhagavad Gita Ka Saar )

श्री कृष्ण अर्जुन को उपदेश देते हुए बताते है कि पार्थ, यह मास का शरीर है, जो धरती के पंच तत्वों से बना हुआ है। इसीलिए यह नश्वर का है। यानि कि शरीर नाशवान है और यह जिन तत्वो से बना है – आकाश, पृथ्वी, अग्नि, वायु और जल उन्ही में विलीन हो जाएगा। लेकिन आत्मा अजर है वह कभी नहीं मरती ना ही उसे नष्ट किया जा सकता है। आत्मा ना वृद्ध होती है ना ही वह छोटी है उसका आकार नहीं निराकार है, और आत्मा मैं हूँ और में ही हर जगह हूँ। 

श्री कृष्ण अर्जुन को बताते है कि किस तरह इंसान का शरीर आत्मा के लिए एक वस्त्र की भाँति होता है और आत्मा सभी भावनाओ से मुक्त है उसे कोई पाबंदी नहीं है। एक शरीर नष्ट होने के बाद यह दूसरा जन्म लेती है और दूसरा नया तन पाती है। आत्मा ना मर सकती है, ना उसका जन्म होता है। (Bhagavad Gita Ka Saar )

आत्मा अपने कर्म को प्राथमिक मानती है और यह जीवन और मृत्यु के चक्र से गुजर कर मेरे पास बैकुंठ आती है। 

ये दुनिया, समय और काल क्या है? 

अहमात्मा गुडाकेश सर्वभूताशयस्थितः ।

अहमादिश्च मध्यं च भूतानामन्त एव च ॥

अर्थात्‌ – हे पार्थ! सभी कालों का काल में ही हूँ, भूत भविष्य और वर्तमान में ही हूँ। मैं ही सबका ह्रदय में मौजूद आत्मा हूँ। मैं ही सभी भूतो का भूत, मध्य और अंत हूँ।। 

प्रभु श्री कृष्ण कहते है –  सब कुछ में ही हूँ, आत्मा, समय, काम, अवधि सब कुछ में ही हूँ। मैं ही सूर्य और चंद्रमा हूँ सभी नक्षत्रों का सार में ही हूँ। (Bhagavad Gita Ka Saar )

“यद्यदाचरति श्रेष्ठस्तत्तदेवेतरो जन:। स यत्प्रमाणं कुरुते लोकस्तदनुवर्तते” ॥

अर्थात – श्री कृष्ण कहते है, समाज में उच्चतम पुरुष यानी कि श्रेष्ठ पुरुष जैसा स्वभाव और आचरण का अनुसरण करते है अन्य निम्न श्रेणी के मनुष्य भी वैसा ही कार्य करने लगते हैं। 

धर्म के मार्ग पर चलने वालों का कल्याण – 

परित्राणाय साधूनाम् विनाशाय च दुष्कृताम्। धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे-युगे॥

अर्थात्‌ – 

धर्म पर विश्वास रखने वाले लोगों पर जब भी कोई विपत्ति आएगी, साधू संतों, का अपमान होगा तब में यानी कि ईश्वर जन्म लूँगा। में धर्म की स्थापना के लिए हर युग में जन्म लेंगे। (Bhagavad Gita Ka Saar )

कर्म योग – 

कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन। मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि॥

प्रभु श्री कृष्ण कहते है कि सिर्फ एक ही चीज है जो तुम्हारे हाथ में है वह है कर्म और कर्म पर ही इंसान का पूरा अधिकार है। फल की प्राप्ति की इच्छा करके मनुष्य अपनी चिंता बढ़ाता है। सिर्फ कर्म पर अधिकार है, फल पर कोई जोर नहीं है इसलिए प्रभु ने कर्म को प्रधानता दी है। सिर्फ फल की इच्छा रखने से फल प्राप्त नहीं हो सकता। 

यह श्लोक बताता है कि जीवन के लिए सबसे महत्वपूर्ण क्या है? कर्म ही है जो आपको उच्च और निम्न बनाता है। जैसा आप कर्म करते है आप वैसा ही फल पाते है। (Bhagavad Gita Ka Saar )

ज्ञान और ईश्वर – 

श्रद्धावान्ल्लभते ज्ञानं तत्पर: संयतेन्द्रिय:। ज्ञानं लब्ध्वा परां शान्तिमचिरेणाधिगच्छति॥

प्रभु श्री कृष्ण कहते है कि ज्ञानी पुरुष वही है जो अपनी इंद्रियों पर नियंत्रण रख सकता है। जो व्यक्ति धर्म का पालन करके समाज में दया भाव से जीवन यापन करता है में उसके साथ रहता हूँ। धर्म का अनुसरण ही ज्ञान की प्राप्ति का मार्ग है और जो ज्ञानी है वह ईश्वर की कृपा का उपभोग करता है। 

किसी और की नकल ना करें अपना लक्ष्य बनाए – 

प्रभु कहते है कि किसी की नकल करके आप अपने कर्म की खोज नहीं कर सकते। आप अपना आत्मचिंतन करके ही अपने असली कर्म को पहचान सकते है और उस कर्म का पालन करके ही मुक्ति की राह पर आते है। 

प्रभु श्री कृष्ण कहते है कि सबका जीवन सापेक्ष है।  सीमा पर सुरक्षा में लगा एक योद्धा सोच सकता है कि किसान का जीवन सुखद और खुशियों से भरा होता है।  किसान सोच सकता है कि एक योद्धा का जीवन ऊर्जावान और सक्रिय है।  लेकिन सत्य यह है कि दुनिया में दोनों के जीवन का समान महत्व है।  और प्रभु दोनों की कर्मशीलता को सराहते है। घास हमेशा दूसरी तरफ हरी दिखेगी।(Bhagavad Gita Ka Saar )

गीता कहती है कि – किसी और की नकल करके अपने जीवन को जीने से बेहतर आप अपने कर्म को खोजकर अपने लक्ष्यों का चुनाव करें। 

जब हम दूसरों की नकल करने लगते है तो हम अपने आप को भूल जाते है आपने जीवन के अहम कर्तव्यों को भूल जाते हैं। हम भूल जाते हैं कि हमारे अपने लक्ष्य और सपने क्या हैं ? हम एक बेहतर व्यक्ति बनने की कोशिश करते हैं, लेकिन हम खुद ही खुद को पीछे रखते है, क्योंकि हम अपने चुनाव नहीं करते बल्कि हम दूसरों की तरह बनने की कोशिश करते है। 

सबके साथ समान व्यवहार करें – 

प्रभु श्री कृष्ण कहते है कि सबके साथ समान व्यवहार करना चाहिए। गीता में समान व्यवहार को लेकर एक पूरा अध्याय समर्पित है।  शत्रुओं के साथ भी अच्छा व्यवहार करना चाहिए , क्योंकि इससे आपके अंदर का अपराधबोध कम होगा और आपके अंदर लड़ने के लिए भावनात्मक बोझ कम होगा।

प्रभु का सबसे प्रिय वही है जो संसार के हर जीव में मेरा (प्रभु) का अंश देखता है। क्योंकि में ही संसार की हर शक्तिशाली वस्तु और जीव का कि शक्ति का श्रोत हूँ। जो मर प्राणी में मुझे देखता है और किसी को व्यर्थ नुकसान नहीं पहुंचाता वह व्यक्ति स्वर्ग का अधिकारी होता है। (Bhagavad Gita Ka Saar )

अच्छा करके आशा ना करें – 

प्रभु श्री कृष्ण कहते है कि तुम दूसरों के साथ अच्छा करके उससे अच्छे की आशा मत रखो। आप किसी की मदद करके उससे बदले में मदद की इच्छा को त्याग दे अपना कर्म करे प्रभु आपको उसका फल देंगे। आप इस लिए किसी से उम्मीद ना करे कि आपने किसी के लिए कुछ किया है। 

किसी की मदद तब ही मदद कहलाती है जब आप उसके बदले में कुछ नहीं चाहते और एक उपहार तभी शुद्ध उपहार है जब वह दिल से सही व्यक्ति को सही समय पर और सही जगह पर दिया जाता है, और जब हम बदले में कुछ नहीं की उम्मीद करते हैं। गीता इसके बारे में विभिन्न रूपों में बात करती है और इसकी नैतिकता की तुलना में बहुत अधिक व्यावहारिक समझ रखती है।(Bhagavad Gita Ka Saar )

प्रभु श्री शरण में रहो – 

युद्ध भूमि में जब प्रभु श्री कृष्ण ने अर्जुन की सारी संका दूर करके कहा वत्स जो इंसान को सत्य के मार्ग पर चलकर धर्म का पालन करता है और हमेशा मेरी शरण में रहता है। जो व्यक्ति खुले मन से मुझे पाना चाहता है में उसका हो जाता हूँ। सच्ची श्रद्धा रखने वाले व्यक्ति से ईश्वर पल भर भी दूर नहीं रहते। 

श्री कृष्ण कह्ते है, जो व्यक्ति संसार की मोह माया, सुख दुःख का त्याग कर के मेरा ध्यान करता है, वह ज्ञान का अनुसरण करते हुए अपने कर्म को तत्परता से करता रहता है। जिसके बाद उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है जो जीवन मरण के चक्र से बाहर निकल जाता है। (Bhagavad Gita Ka Saar )

सिर्फ सोचो मत, कर्म करो – 

श्रीमद्भागवत गीता कहती है कि इंसान सिर्फ सोचने से फल की प्राप्ति नहीं कर सकता बल्कि उसे फल प्राप्त करने के लिए अपने कर्म को पूरे मन से करना होगा। हम अक्सर ऐसी बातों को सोचते है और उनका विश्लेषण करते है जिन्हें हम अपनी जिंदगी में लागू नहीं करते। 

हम उस ज्ञान पर काम करने के बजाय उन चीजों का विश्लेषण करने और उसके बारे में बात करने में लगे रहते  हैं।(Bhagavad Gita Ka Saar )

अपरिपक्व लोग मानते हैं कि ज्ञान और क्रिया दोनों अलग-अलग हैं, लेकिन बुद्धिमान व्यक्ति उन्हें हमेशा से एक ही मानते हैं।

जो सोचा है वो करे अधिक विश्लेषण ना करें। यदि आप किसी विचार को ज्यादा सोचते है फिर उसकी कर्मठता खत्म हो जाती है और आपको उसमे कई नकारत्मक पहलु नजर आने लगते हैं और इसीलिये श्री कृष्ण कहते है कि – “तू सिर्फ अपना कर्म कर फल की चिंता व्यर्थ है। ” 

बेशक आपको किसी दूसरे व्यक्ति का काम पसंद है लेकिन फिर भी आपको अपना काम नहीं छोड़ना चाहिए और उसे हमेशा करते रहना चाहिए। ईश्वर बाद में आपकी सहायता जरुर करता है क्योंकि आप भले ही अपने कर्म से संतुष्ट ना हो लेकिन उसके फल से जरुर संतुष्ट होंगे। 

जब आप दूसरों के बारे में और उनके कार्यों के बारे में सोचेंगे तो आपके दुःखों का अंत कभी नहीं होगा। अपने कर्मों में व्यस्त रहे और संतुष्ट रहे। (Bhagavad Gita Ka Saar )

दूसरों के बारे में और उनके कार्यों के बारे में सोचेंगे तो आपके दुःखों का अंत कभी नहीं होगा। 

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By Nihal chauhan

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