हिन्दुओं के देवता ईश्वर श्री कृष्ण को कौन नहीं जानता? सब ही जानते है और उनसे जुड़ी कहानियाँ के बारे में भी सब ही जानते होंगे लेकिन आज हम आपको श्री कृष्ण के हमारी दुनिया में होने के कुछ ऐसे तथ्य बतायेंगे जिन्हें दुनिया ने वैज्ञानिकों ने सत्य माना है और उसके सबूत भी ज़िन्दा है।
आज हम आपको अवगत करायेंगे हिन्दुओं के देवता श्री कृष्णा के बारे में कुछ ऐसे वैज्ञानिक तथ्य और जबाब जिसे विज्ञान ने भी माना है।
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भारत के बारे में कुछ अनोखे तथ्य –
- क्या पौराणिक कथाओं में जिस द्वारका का उल्लेख है, क्या वह आज भी है?
- क्या श्री कृष्ण और बासुदेव के बीच में सच में यमुना नदी का महत्त्व था?
- एक युनानी राजदूत द्वारा बनाए गए प्राचीन स्तंभ का, भगवान श्री कृष्ण से क्या संबंध है?
पवित्र ग्रंथ श्रीमद-भगवद वर्णन करता है – कि कैसे सब कुछ रुक जाता है, सारी क्रियाएं बंद हो जाती है जब श्री कृष्ण कहीं से गुजरते है। भागवत पुराण में लिखा है कृष्ण संसार की आंतरिक प्रकृति में इतने स्थापित थे कि वह कृष्ण के सुंदर बाहरी रूप में प्रकट हुए, और उनका इतना सुंदर रूप जिसने भी देखा हर देखने वाला मंत्र मुग्ध हो गया। अब सवाल यह है कि : कृष्ण और उनके समय के बारे में असल सच्चाई क्या है?
एक बड़े स्तर पर किए जा रहा शोध जिसे भरत ज्ञान के नाम से जाना गया है। यह संस्था बड़े पैमाने पर भरत ज्ञान,भारत से जुड़ी प्राचीन सभ्यताओं और हिन्दू देवताओं के गौरवशाली अतीत को जीवित और ज्ञात रखने के लिए खोए हुए अवशेषों को परिश्रमपूर्वक ढूँढ कर अतीत के उन टुकड़ों को मिलाने का काम कर रहा है जो प्राचीन भारतीय संस्कृति और भारतीय देवताओं के काल पर प्रकाश डालता है।
उसी के अनुसार यहाँ कुछ कम ज्ञात तथ्य दिए गए हैं:
श्री कृष्ण : एक सत्य या मिथक ?
भारत में और भारत के आसपास के क्षेत्रों में कई ऐसे पुरातन कला के सबूत मिलते हैं जो श्री कृष्ण की महिमा को दर्शाते हैं यही नहीं पूरे भारत से कई पुरातात्विक कलाकृतियाँ हैं जो कृष्ण के संदर्भ में निरंतरता दर्शाती हैं।
एक ग्रीक राजदूत द्वारा श्री कृष्ण के होने के कुछ सबूत पेश किए –
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दुनिया की सबसे प्राचीनतम Archeological Site में से एक (जो आज भी जमीन पर स्थित है) में श्री कृष्ण को, वासुदेव के रूप में वर्णित किया गया है। सम्भवतः यह स्तंभ Heliodorus pillar है। यह स्तंभ भारत के मध्यप्रदेश में सांची के विदिशा नामक जगह पर स्थिति है। यह एक ऐसा स्तंभ है, जिसमें ऊपर उड़ाता हुआ गरुड़ बना हुआ है।
पुरातत्व सर्वेक्षण के मुताबिक यह स्तंभ एक युनानी राजदूत हेलियोडोरस द्वारा बनवाया गया था। हेलियोडोरस द्वारा बनाया गया यह पिलर करीब 120 ईशा पूर्व का है । यही कारण है कि इस स्तंभ को हेलियोडोरस स्तंभ के नाम से जाना जाता है।
इतिहासकारों ने इस स्तंभ पर अंकित पाठ के आधार पर इसे करीब 113 ईसा पूर्व का बताया है। हेलियोडोरस का उल्लेख बताता है कि यह स्तम्भ वासुदेव की स्मृति में बनाया जा रहा था और हेलियोडोरस श्री कृष्ण के दर्शन का अनुयायी बन गया।
कुछ प्राचीनतम दुर्लभ सिक्कों की खोज –
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प्राचीन काल में जब सिकंदर महान भारत की तरफ आया था करीब 326 ईशा पूर्व तब उसके कुछ सैनिक भारत के नॉर्थ वेस्ट वाले इलाक़ों में ही रुक गए। ग्रीक सैनिकों ने वहां छोटे छोटे राज बनाए और खुद वहां के राजा बन गए। आज इतिहासकार इन जगहों को Bactria (हाल में Afghanistan) के नाम से जानते है।
उसी समय के नॉर्थ वेस्ट के कुछ प्रमुख राजाओं में एक अगाथोकल्स या उसे ऐ-खानौम के नाम से जाना जाता था उसका शासन काल , 180 ईसा पूर्व से 165 ईसा पूर्व तक रहा। अगाथोकल्स के शासनकाल के दौरान उसने जो सिक्के जारी किए थे वह चौकोर सिक्के बेहद अलग और अद्वितीय थे। सिक्कों को ऊपर उभरे हुए अक्षरों में दो लिपियां उकेरी गयी थी जिसमें से एक ग्रीक लिपि थी और दूसरे ब्राह्मी लिपि थी।
एक फ्रांसिसी पुरातत्व विभाग के अधिकारी P. Bernard को उसी समय के 6 प्राचीन सिक्के मिले उनमें से एक सिक्के पर उभरी हुई आकृति में एक व्यक्ति चक्र और शंख के साथ खड़ा हुआ है, सिक्के में नीचे की तरफ कोई गोलाकार वस्तु दिखाई गयी है।
इतिहासकारों का मानना है कि शंख और चक्र श्री कृष्ण का प्रतिनिधित्व करते है। जिसका अर्थ उन्होंने यह लगाया कि प्राचीन बैक्ट्रियन राजाओं के द्वारा भी श्री कृष्ण को नायक माना गया है। यह काफी तरह से यह सिद्ध कर देता है कि श्री कृष्ण का जिक्र कोई कुछ बर्षों पुराना नहीं है ब्लकि काफी पुराना और आज की तुलना है पहले उन्हें अधिक मान्यताओं से नावाजित किया जाता था।
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जैन धर्म की मान्यताओं में श्री कृष्ण का उल्लेख –
जैन समाज के लोगों का सबसे बड़ा तीर्थ स्थल गुजरात में है। गुजरात के पालिताना (सौराष्ट्र) में स्थित यह मंदिर प्रमुख जैन तीर्थस्थलों में से एक है। यहां के प्राचीन राजा सामंथा सिम्हादित्य के पुरातन शिलालेखों में लिखा गया है समुद से लगा हुआ कि द्वारका, उस समय पश्चिमी सौराष्ट्र की राजधानी हुआ करती थी और श्री कृष्ण द्वारिका में ही रहते थे। प्राचीन जैन धर्म में श्री कृष्ण के प्रति काफी ज्यादा आस्था दर्शायी गयी है।
कुरुक्षेत्र, ज्योतिसार में भगवत गीता का वटवृक्ष :
वैज्ञानिकों के मुताबिक यह संभव नहीं है कि जब भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को गीता का साथ सुनाया था उस समय जो वृक्ष उस जगह पर था वही वटवृक्ष था। ताज्जुब की बात है कि किताबों में और पुराने लेखों में इस वृक्ष के बारे में संपूर्ण जानकारी दी गई है, हालांकि वृक्ष की कार्बन डेटिंग संभव नहीं है। परंतु फिर भी यह बात बेहद आश्चर्यजनक है कि उस पेड़ का जिक्र वेदों में मिलता है जो आज भी जीवित है और उसकी पूजा होती है।
कुरुक्षेत्र की अन्य कई ऐसी वस्तुओं की कार्बन डेटिंग से यह बात पता चलती है कि महाभारत युद्ध Indus Valley civilization से काफी पहले हो चुका है।
मोहनजोदड़ो के यमला अर्जुन 2200 ईसा पूर्व :
प्रख्यात पुरातत्वविद् और आर्कियोएस्ट्रोनॉमी के क्षेत्र में एक प्रमुख नाम डॉ यूआन मैकी को मिट्टी के कुछ बेहद प्राचीन टुकड़े मिले। मिट्टी के यह टुकड़े उस समय के है जब प्रभु शिव के दो महान भक्तों को नारदजी द्वारा शापित किया गया। उनका नाम नलकुवर और मणिग्रीव था जिन्हें भौतिक धन में लिप्त होने के लिए और मानवों पर अत्याचार के लिए दण्डित किया गया था।
दोनों भक्तों को किसी पेड़ की तरह नीरस तथा अचेतन बना दिया। सजा के दौरान उनका सामना भगवान कृष्ण से हुआ। माता यशोदा के आँगन में यही दोनों पेड़ थे। यह घटना तकरीबन 2200 ईसा पूर्व में मोहनजोदड़ो के यमला अर्जुन की है। डॉ Macky के अनुसार उस समय भी श्री कृष्ण भक्ति की संस्कृति थी।
दक्षिण में द्वारका का जिक्र –
श्री कृष्ण की महिमा के गुणगान सिर्फ गुजरात या द्वारिका तक ही सीमित नहीं थे ब्लकि इसकी चपेट में उस समय का हर हिस्सा था। भारत के दक्षिण में चेन्नई के मणिमंगलम गाँव में एक छोटा सा मंदिर है, यह मदिर उनके प्राचीन देवता थुवरपति के नाम पर है माना जाता है कि यह मंदिर का नाम thubrai द्वारिका के नाम पर रखा गया था। ऐसा माना जाता है कि प्राचीन द्वारिका के कुछ लोग भारत के दक्षिण भाग में आ गए थे और उन्हीं के द्वारा यह मंदिर तैयार किया गया था। ऐसी कई कथा और प्रेरणाएँ है जो इस जुड़ाव का सुझाव देती हैं।
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द्वारका: समुद्र में डूबा हुआ शहर
श्री कृष्ण द्वारा बनाया गया यह शहर द्वारिकापुरी या द्वारका जो कि हाल गुजरात का एक तटीय शहर है। आज द्वारका पूरी दुनिया में एक चर्चा का विषय है, प्राचीन द्वारिका का अस्तित्व क्या है? क्या यह वास्तविकता में श्री कृष्ण द्वारा एक दिन में बनाया गया शहर था या यह सिर्फ एक मिथ है?
प्राचीन द्वारका के बारे में कई कुछ सवाल उठें है और उठते रहेगे। यह शहर श्री कृष्ण द्वारा तब बसाया गया था जब श्री कृष्ण अपने लोगों की सुरक्षा के लिए मथुरा से द्वारिका आए। वहां उन्होंने जरासंध से 17 बार युद्ध किया युद्ध के पश्चात् उन्होंने यह शहर बसाया था, जिसके लिए एक पूरी पुराणिक कहानी है जिसमें बताया गया कि श्री कृष्ण को शहर बसाने के लिए समुद्र 12 योजन पीछे खिसक गया था।
विश्वकर्मा जो कि देवताओं के आर्किटेक्ट थे उन्होंने इस सुंदर शहर को डिजाइन किया और बनाया। द्वारिका उस समय एक राजधानी शहर था और इस शहर को द्वारिका या द्वारवती के नाम से जाना जाता था । यह उस काल का सबसे फलता फूलता हुआ शहर माना जाता था। शहर का नाम द्वारका रखने के पीछे मुख्य मतलब था कि वह स्थान जहां ब्रह्मा का मिलन होता है। आसान शब्दों में कहा जाए तो एक ऐसा स्थान जहाँ आपको आध्यात्मिक मुक्ति मिलती है।
इतिहास है कि श्री कृष्ण की म्रत्यु के बाद द्वारका 3031 ईसा पूर्व में समुद्र में डूब गया। प्राचीन लिखे हुए स्थापत्य साक्ष्य और कई पुराने सबूत जैसे कि मुहरे और प्राचीन शिलालेख बताते हैं कि जिस समय द्वारका जलमग्न हुआ वह समय महाभारत युग का रहा होगा ।”
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- दी गई जानकारी का स्रोत राष्ट्रीय समुद्र विज्ञान संस्थान और गुजरात सरकार की समुद्री पुरातत्व इकाई द्वारा आयोजित समुद्री पुरातात्विक जांच को दिया जाता है।
1983 के 1990 के बीच किए गए कई अन्वेषणों से पता चला कि वास्तविकता में गुजरात के समंदर में एक महान शहर के जलमग्न है क्योंकि वहां कई खंडहरों का पता चला है। कुल 6 सेक्टरों में निर्मित, इस जलमग्न शहर की चारदीवारी बोल्डर पर टिकी हुई है, जिससे यह साफ होता है कि जमीन को समुद्र से पुनः प्राप्त किया गया था। द्वारिका शहर का सामान्य डिजाइन पूरी तरह वैसा ही है जैसा महाभारत के विवरणों से प्राप्त होता है और मेल खाता है।
द्वारका में मिली सील (मुहर) का रहस्य
द्वारका में जब खुदाई हुयीं तो वहां कई अनूठी चीजे प्राप्त हुयीं जो बताती है कि यह प्राचीन शहर आखिर कितना पुराना है। द्वारका में चल रहे इसी समुद्री उत्खनन में एक मुहर बरामद हुयी जिसपर तीन जानवर छपे हुए हैं। seal के ऊपर एक बकरी, बैल और एक गेंडा का चित्र उकेरा हुआ था।
द्वारका से हुयी इस मुहर की खोज जलमग्न द्वारका की पुष्टि करती है। इसी के साथ यह भी पता चलता है मुहर और द्वारका के बीच के स्थापत्य संबध क्या थे। सबसे बड़ी बात यह है कि लेखक द्वारा बताई गयी तीन जानवर वाली मुहर की बात भी सत्य साबित होती है, जैसा कि तमाम ग्रंथों में लिखा हुआ है।
यह मुहर साबित कर देती है कि ग्रंथो में लिखी एक एक बात सत्य है कोई मनगढ़ंत कहानी नहीं । यह तीन सिर वाली मुहर द्वारका के कानूनी निवासियों के लिए पहचान का प्रतीक थी।
” यह मुहर प्राचीन ग्रंथ “हरिवंश” में लिखी हुयी सभी बातों को समर्थन करती है। ग्रंथ के मुताबिक प्राचीन द्वारका में रहने वाले हर नागरिक के पास इस मुहर का होना अनिवार्य ही था। बिना इस मुहर के द्वारका में प्रवेश वर्जित था।”
मुहर वाली इस योजना से श्री कृष्ण ने जरासंध की तरफ से आने वाले सभी घुसपैठियों को अपनी प्रजा से सुरक्षित रख पाया था।
कुछ अन्य रहस्य –
यमुना नदी की आश्चर्यजनक महिमा –
जैसा कि काव्य और ग्रंथो में बताया गया है कि, जब बासुदेव श्री कृष्ण को लेकर नंदगांव जा रहे थे तब यमुना नदी उन्हें रास्ता देने के लिए दो भागों में विभाजित हो गयी थी ताकि वह श्री कृष्ण को लेके निकल सके। उस समय यह प्रतीत हो रहा था जैसे नदी श्री कृष्ण के पैरों को छूने की कोशिश कर रहीं हो।
विज्ञान में नदी के विभाजित होने वाली बात के लिए एक पुख्ता तर्क है। हालांकि यह बेहद दुर्लभ माना जाता है। उस समय जब वासुदेव श्री कृष्णा को अपने सिर पर टोकरी रख कर जा रहे थे तब नदी के विभाजित होने के पीछे विज्ञान के “wind set down theory ” सिद्धांत का उपयोग हुआ था।
श्री कृष्ण की 16,000 पत्नियां होने का सच –
जैसा कि हम सभी को पता है और हमारे ग्रंथ भी यही बताते है कि श्री कृष्ण ने 16,000 राजकुमारीयों से विवाह किए। श्री कृष्ण की यह कहानी नरकासुर नामक एक राक्षस के इर्द गिर्द घूमती है।
दरअसल नरकासुर एक बहुत विधर्मी राक्षस था और उस समय उसने करीब 16,000 राजकुमारी को अपनी कैद में रखा था। नरकासुर के मामले में एक आकाशवाणी हुयी थी आकाशवाणी में कहां गया था कि “हे नरकासुर तेरा अंत कोई स्त्री ही करेगी” ।
बाद में इसी आकाशवाणी के अंतर्गत श्री कृष्ण की पत्नि सत्यभामा ने उस राक्षस का अंत किया और आकाशवाणी सत्य हो गयी। बाद में यह उन राजकुमारीयो ने श्री कृष्ण को ही अपना पति मान लिया क्योंकि उन्होंने कहा कि समाज में उन्हें कोई स्वीकार नहीं करेगा वह कहां जाएगी इसलिए श्री कृष्ण ने उनसे विवाह करके सबको समाज में रहने की जगह दी।
धर्म में फंसकर, कृष्ण ने महिलाओं को स्वीकार किया, जिससे वे एक सम्मानजनक जीवन जीने में सक्षम हुईं।
जिस दिन नरकासुर को परास्त किया गया था और लोगों को उसके आतंक से मुक्त किया गया था, उस दिन को नरक-चतुर्दशी के रूप में मनाया जाता है। यह दीपावली त्योहार की अवधि के दौरान आता है।
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