कर्म क्या है ? यदि इंसान इस सवाल की असलियत और इसके जबाब को खोज ले तो इंसानी कायनात ही बदल जाए। कर्म क्या है? इस सवाल के कई तरह के जवाब सामने आए और हर जवाब के साथ यह सवाल और जटिल होता जा रहा है। (कर्म क्या है ?)
कर्म क्या है ?
हमारे जहन में लाखों करोड़ों विचार आते है और पृथ्वी और इस ब्रह्मांड में सभी जीवित जीवों के जहन में कई तरह के विचार आते हैं। और यह विचार ही है जो हमारे कर्मो का निर्माण करते है। साफ़ और आसान शब्दों में कहा जाए तो यह विचार हमें किसी ना किसी क्रिया को करने के लिए प्रेरित करते हैं। (कर्म क्या है ?)
यही वह भावना है, जिसे कर्म कहा जाता है। आमतौर पर अधिकांश ज्ञानी और बड़े लोगों द्वारा कर्म की इसी परिभाषा को समर्थन दिया गया है। पर क्या असल में कर्म यही है?
इस बारे में की विचार ही कर्मों का निर्माण करते है इस तर्क से कई बड़े बुद्धिमान और विद्यमान लोग सहमत नहीं है। उनके मानने में कर्म के अलग मायने है और मायने भी ऐसे है कि आप अगर सुने तो शायद ही उससे असहमत हो पाए। (कर्म क्या है ?)
उनका मानना है कि हर मन में दो मुख्य तत्व होते है और तत्व आपको एक ही समय में दो विचार करने का मौका देते हैं।
उदाहरण से समझिए – कई बार अपने मन में चल रहीं उलझन से गुजर रहे होते है और ऐसे में आपके मन के भीतर के यह दो तत्व आपस में संघर्ष कर रहे होते हैं। (कर्म क्या है ?)
जैसे कि – यदि आप कोई काम करते है मान लीजिए आप किसी इंसान को कुछ पैसे दान करना चाहते है तो इसी समय आपके मन में एक विचार और आएगा की दान करू? या ना करू?
और आपके मस्तिष्क की इस परिस्थिति में आपका कर्म कभी स्पष्ट नहीं होता। असल में होता यह है कि जब आपके मस्तिष्क के भीतर यह दो तत्व आपस में संघर्ष करते है तब आप अपना कर्म ज्ञात नहीं कर पाते और आप इस तरह के काम में पूरी तरह फैल हो जाते हैं। (कर्म क्या है ?)
आप इस बात पर गौर करिए की जब आप कोई ऐसा काम करते हैं जिसमें आपको असमंजस होती है या मस्तिष्क में विचारों का द्वंद होता है तो ऐसा कार्य कभी आपका कर्म नहीं हो सकता।
क्योंकि आपका कर्म यही स्पस्ट होता है। जब आपके मस्तिष्क के यह दोनों तत्व अपना मत एक ही रखते है यानी कि मन में कोई भी शंका नहीं है सारी बात पानी की तरह साफ है। (कर्म क्या है ?)
आप कोई ऐसा काम करते है जिससे आपके मन में कोई वैचारिक संघर्ष नहीं होता। उदाहरण के लिए –
आप सुबह उठकर पूजा करते है तो क्या आप तब यह सोचते है कि पूजा करू या ना करू? कभी नहीं सोचते और इस समय यह आपका कर्म है।
कर्म वही है जो पूरी तरह स्पष्ठ है, जिसमें कोई वैचारिक मतभेद या विचारों का कोई मानसिक द्वंद नहीं होता। कर्म किसी मनुष्य का मोहताज नहीं हैं बल्कि मनुष्य अपने कर्म का मोहताज है क्योंकि कर्म ही सर्वोपरि और सर्वश्रेष्ठ है।
आपके जीवन में कई बार ऐसी घटनाएँ हुयी है जब आप अपने कर्म के अनुरूप नहीं चल पाते जितने भी फैसले आपने असमंजस में लिए वह सब मानवीय प्रकृति के खिलाफ है। और प्रकृति के खिलाफ जाकर अपने असल कर्म से हटकर काम तो कर सकते हैं परंतु आप फिर कभी संतुष्ट नहीं रह सकते।(कर्म क्या है ?)
इस तरह के लोगों से जिन्होंने अपने कर्म को नजरअंदाज किया वह कभी मानसिक रूप से सुखी नहीं है और ऐसे लोगों का जीवन किसी दलदल में फंसे किसी सियार की तरह हो जाता है।
जिसे लगता है कि वह अपने लक्ष्य के करीब पहुंच रहा है, बल्कि सत्य यह है कि वह जीवन रूपी पूंजी को व्यर्थबाद में खर्च करता चला रहा है। (कर्म क्या है ?)
इसलिए जरूरी है कि आप अपने कर्म को समझे और उसके अनुरूप काम करे और इस तरह से आप अपने जीवन को एक बेहतर पराकाष्ठा पर पहुँचते हुए देखेंगे।
जिनका कर्म स्पष्ठ नहीं है वही चिंतित है जिसका कर्म निश्चित है वह पूरी तरह स्वतंत्र है। (कर्म क्या है ?)
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कर्म के विपरीत जाने का परिणाम क्या होगा?
एक सरल बात आपको समझाने का प्रयास करते है – चलिए यह बताएं कि की यदि रात को 2 बजे आपको आपको माँ की याद आती है तो इस पीड़ा को आप दूर कर सकते हैं क्या?
या आपकी मां जो आपसे दूर है उसका अपने बेटे से दूर रहने का यह दर्द बांटा जा सकता है? कहने को फोन, वीडियो कॉल हर तरह की सुविधाएं उपलब्ध है परंतु फिर भी आप असली सुख से वंचित रहते हैं। (कर्म क्या है ?)
इस तरह की स्थिति में कर्म से भटका हुआ व्यक्ति खुद को बुद्धिमान समझता है कि – अरे मैंने तो माँ से फोन पर बात कर ली तो मेरा यह दुख कम हो गया परंतु असलियत इसके विपरीत है उसने अपनी माँ से दूर जाकर अपनी असली खुशी को खोया बल्कि फोन पर बात करके वह अपनी समस्याओं को और ज्यादा बड़ा रहा है। (कर्म क्या है ?)
अब ऐसे इंसानों को आप क्या कहेंगे? की क्या ये लोग खुश है? यह तो महज एक उदहारण था यह समझाने के लिए की यदि एक बार भी आप अपने कर्म के विरुद्ध जाते है तो उसका परिणाम क्या होता है। (कर्म क्या है ?)
असलियत में आपको यह समझने की कोशिश करनी चाहिए वह फैसला जिसका विरोध आपके मन ने या दिल ने एक बार भी नहीं किया तो वह ही आपका कर्म है और उस कार्य को करना आपका असली कर्म है।
आज के समय में 97% लोग नहीं समझते की असली खुशी क्या है? क्योंकि उन्हें अपना असली कर्म ही नहीं पता। जो सफल है, समृद्ध है, सामर्थ्यवान है वह वही व्यक्ति है जो अपने कर्म पर चला अर्थात यह वह लोग है जो अपने मन और दिल के दिखाए और सुझाए हुए रास्ते पर चलते हुए। (कर्म क्या है ?)
ऐसा कोई भी विचार या फैसला जो आपके मन में आशांति पैदा करे और आपके सामने दो विकल्प खड़े कर दे कि इस काम को करू या ना करू?
उस काम से आपको दूर ही हो जाना चाहिए और इंतजार करे उस समय का या खोज करे खुद की और ऐसे काम की जहां आपका दिल और दिमाग सिर्फ एक ही चीज पर ठीक जाए वहां आपको निश्चित सफलता मिलेगी और वही आपका असली कर्म होगा। (कर्म क्या है ?)
सदैव ध्यान रहे कर्मा के विरुद्ध कोई नहीं टिकता अगर आप इसके विपरीत गए तो वह आपका चैन छीन लेगा और आपके पास सब होते हुए भी घनघोर कष्ट और अशांति होगी। (कर्म क्या है ?)
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सफलता क्या है?
क्या अपनी ख्वाहिशों को पा लेना ही असली सफलता है?
या आपके कर्म का फल आपकी सफलता है? असल सफलता आपके कर्म में है उसके फल में नहीं। कर्म ही वह फल है जो आपको खुशी का एहसास दिलाता है। (कर्म क्या है ?)
अगर आप सफलता चाहते है तो अपने कर्म को उस काम को करो जहां आपका मन और चित्त एक दूसरे के साथ हो और दोनों अपनी रजामंदी जताए। (कर्म क्या है ?)
जब आप ऐसा काम करते है जिसमें आपकी पूर्ण इच्छा होती है मन में कोई विडम्बना नहीं होती उस काम को करना ही आपकी असली सफलता है अर्थात् :
“यदि आपका मन दीन दुखियों की मदद करने को करता है तो उनकी मदद करना ही आपकी सफलता है। सफलता कोई इंतजार नहीं है, सफलता पल भर में महसूस करने वाली एक भावना है ”
आप जितने भी ऐसे काम करते है जिससे आपके मन में शांति रहती है, मन प्रसन्न होता है तो वही आपकी सफलता है।
सफलता वह बिल्कुल भी नहीं है, कि जब आप अपनी जिंदगी के 70 साल मेहनत करते है पैसा कमाने के लिए और आखिरी समय में आपके बच्चे आपको वृद्धा आश्रम में भर्ती करा देते है। (कर्म क्या है ?)
वास्तविकता में इस तरह की स्थिति का आना भी कर्म का प्रतिशोध होता है क्योंकि आप कर्म के विपरीत गए तो उसने आपकी खुशी तबाह कर दी बेशक आप एक अरब पति है पर फिर भी कर्म आपको धूल चटा ही देता है। (कर्म क्या है ?)
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कर्म के प्रकार
कर्म को मुख्यतः दो भागों में बांटा गया है – सूक्ष्म कर्म और स्थूल कर्म
यह दोनों प्रकार के कर्म एक ही पेड़ के दो फल है बस अन्तर है तो इनके आकार में और इनके कार्य क्षेत्र में। (कर्म क्या है ?)
सूक्ष्म कर्म – यह कर्म एक सोच है अर्थात् यह हमारे शरीर के मस्तिष्क तक सीमित है परंतु सूक्ष्म कर्म ही हमारे जीवन सबसे महत्वपूर्ण अंग है साफ और आसान शब्दों में कहा जाए तो यह कर्म हमारे कर्म की नींव है। (कर्म क्या है ?)
“मान लीजिए आपको कोई घर बनवाना है तो सबसे पहले वह घर आपके मन में बनता है कि उसमे ऐसा कमरा बनाऊँगा, ऐसी बाथरुम इत्यादि सभी विचारों का एक घर का निर्माण सबसे पहले हमारे मन में हो जाता है।
इसमें समझने वाली बात यह है कि क्रिया यहां भी हुईं आपके मन में और उस क्रिया से आपका घर बन गया। यह घर सूक्ष्म कर्म का उदाहरण है। इसी प्रकार हमारे मन में जब कोई क्रिया होती है वह इसी कर्म का हिस्सा होती है। “
स्थूल कर्म – यह वह कर्म है जो भौतिक रूप से होता है वही घर जो आपने मन में बनाया वही अब असल रूप में भौतिक दुनिया में बनेगा। जैसे कोई कारीगर पहले नक्शा अपने मन में बनाता है और फिर असलियत में।
अत: पंचतत्वों के दायरे से परे जो सूक्ष्म इच्छाएँ या भावनाएँ उत्पन्न होती हैं, उन्हें भी कर्म कहा जाता है, और पाँच तत्त्वों के दायरे में होने वाली क्रिया को भी कर्म कहा जाता है। इसके अलावा, जो भी छाप (क्रिया के परिणामस्वरूप) मन पर अंकित हो जाती है, वह भी कर्म ही बन जाती है जिससे व्यक्ति को गुजरना ही पड़ता है।
(कर्म क्या है ?)
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क्या कर्मों के अनुसार चलना मुश्किल है?
जीवन चलाने के लिए हर इंसान को कुछ ना कुछ करने की जरूरत होती है। यहा मृत्यु लोक में जीवन जीने के लिए हमेशा कुछ ना कुछ करते रहना होगा।
(कर्म क्या है ?)
समस्याएं तब खड़ी होती है कि जब आप अपने कर्म के विरुद्ध मजबूरी में जाते हैं और कोई ऐसा रास्ता पकड़ लेते है जो आपके लिए बना ही नहीं। आपको लगता है उससे आपकी तकलीफ और दुख कम होगा परंतु आपका वह एक फैसला आपको और गर्त में ले जाता है।
बल्कि जरुरी यह है कि, आपको उस कठिन समय का मुकाबला करना चाहिए। आपको वह दुख या वह परिस्थिति तकलीफ देने के लिए ही आयी है, आप उससे कब तक भागेंगे उसका सामना करो। वही आपका कर्म है। ऐसी स्थिति में आपको धैर्य रखना चाहिए और समय और मौका मिलते ही बाजी पलट देनी चाहिए। (कर्म क्या है ?)
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आप जो भी काम करे उसमे खुद को फंसाये ना बस काम करे चिंता ना करे। क्योंकि कुछ ना कुछ करते रहना ही चाहिए और जैसा कि कहा है कि समय अपने कर्म को करने का मौका सबको देता है, तो आपको भी आपके कर्म करने का मौका दिया जाएगा बस आपको उतावला पन नहीं दिखाना है। पूरे धैर्य से काम ले और अपने कर्म करने की योजना बनाए। (कर्म क्या है ?)
तो, कर्म की दो निम्न श्रेणियां हैं:
कर्म जो पंच तत्वों – पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और ईथर के माध्यम से होता है
कर्म जिस पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता –
यह अलग प्रकार की क्रिया है जो किसी के स्वभाव से ही घटित होती है, जहाँ आप इसे क्रिया भी नहीं कहते। यह अनायास ही, एक अनैच्छिक क्रिया की तरह होता है। (कर्म क्या है ?)
“एक बच्चा अचानक नीचे गिर जाता है और आप अनायास ही जाकर बच्चे को उठा लेते हैं क्योंकि यह आपके स्वभाव में है – यह आप में किसी की मदद करने के लिए बनाया गया है जब वे मुसीबत में हों।”
क्या आप ऐसा नहीं करते? आपको स्कूल में यह सीखने की ज़रूरत नहीं है कि जब भी कोई सीढ़ियों से गिरे, तो आपको जाकर उनकी मदद करनी होगी। लेकिन यह स्वाभाविक है।
उस स्थिति में, आपकी क्रिया ईश्वर की क्रिया के समान होती है – वहाँ सहजता होती है। अनायास किए गए कर्म से कोई कर्म नहीं बनता क्योंकि वह आपके अपने स्वभाव से आता है। इसलिए जब कोई बाघ या शेर शिकार करता है, तो उसे कोई कर्म नहीं मिलता। यदि बिल्ली चूहे को मार डाले तो उसे कर्म नहीं मिलता क्योंकि यह उसके स्वभाव में है।(कर्म क्या है ?)
सब कुछ कर्म है, और सभी को कोई न कोई कर्म करना ही पड़ता है।
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