लंढौर को मसूरी का ताज कहा जा सकता है। यदि आप अंग्रेजों के शासनकाल के समय का भारत देखना चाहते है तो उस समय की एक झलक आप उत्तराखंड राज्य में मसूरी के नजदीक स्थित लण्ढोर में ले सकते हैं। दरअसल सम्पूर्ण मसूरी का इतिहास काफी पुराना है, भारत में ब्रिटिश शासन काल के दौरान Landour का खास मह्त्व रहा।
एक ऐसी जगह जहा आप देख सकते है कि ब्रिटिश लोग किस तरह के वातावरण में रहना पसंद करते थे। पुरानी इमारते, लकड़ी के फर्निचर, चर्च और भी बहुत कुछ जो आपको एहसास दिलाएगा की जैसे आप इतिहास के उन्हीं दिनों में जीवन व्यतित कर रहे हैं।
जैसा कि इसके नाम से ही प्रतीत होता है कि Landour शब्द हिन्दी नहीं है। जाहिर तौर पर इस जगह का यह नाम अंग्रेजो ने साउथ वेस्ट वेल्स के एक गाँव Llanddowror के नाम पर रखा था, जो कि बाद में Landour में तब्दील हो गया।
अँग्रेज इस जगह की पहाड़ी खूबसूरती को देखकर हैरत में पढ़ गए थे और इसके बाद उन्होंने इस जगह को अपने हिसाब से बनाया। असीम शांति और उड़ते हुए बादलों के बीच रहना हकीकत में किसी स्वर्ग जैसा अनुभव है। deodar के लंबे लम्बे पेड़ और धब्बा) गहरा घना पहाड़ी जंगल कभी ना भूलने वाला एहसास है।
आज Landour पूरे विश्व के लिए सबसे पसंदीदा पर्यटन स्थलों में से एक है। हिमालय के शांत और ठंडे वातावरण में मौजूद यह जगह भले ही छोटी है लेकिन यहां करने के लिए काफी कुछ है । हर शाम का एक अलग नज़ारा और कानो में घुलता हुआ धीमा संगीत इस जगह की सुंदरता में चार चांद लगा देता है। हम ना चाहते हुए भी ये सोच में पढ़ जाते है कि कहीं हम इतिहास में तो नहीं चले गए।
मसूरी की भीड़ भाड़ से दूर Landour काफी शांत और सुंदर जगह है। यहां आप वास्तविकता में प्रकृति के अधिक करीब होते हैं।
लंढौर में क्या है खास?
लंढौर की खासियतों की जितनी तारीफ की जाए उतनी ही कम है। अक्सर लोग कह्ते है कि लंढौर में क्या खास है यह इतना offbeat क्यूँ है? इस तरह तमाम सवाल होते है, लेकिन आप सभी की जानकारी के लिए बता दूँ कि पिछले 100 सालो से लंढौर में कुछ भी नहीं बदला है।
1924 के अधिनियम में कहा गया था कि इस क्षेत्र के सभी पेड़/पौधे और पूरा पहाड़ी हिस्सा सेना के पास रहेंगे। नतीजतन , पिछले 100 वर्षों से लंढौर में एक भी पेड़ की कटाई नहीं हुई है। साथ ही साथ , अधिनियम के अनुसार लंढौर में किसी भी प्रकार का नया निर्माण पूर्ण रूप से ‘गैरकानूनी’ है।
यहां पिछले 100 साल पहले भी मात्र 24 घर थे और आज भी उतने ही है। कहा जाता है कि “24 घर चार दुकान बस यही है Landour की पहचान” । आप अंदाजा लगा सकते है कि Landour किस तरह से अनछुआ रह गया। यहां की प्राकृतिक सुन्दरता के सामने सब कुछ फीका ही है।
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मसूरी से किराये की स्कूटरों को लेकर जैसे जैसे हम लोग Landour की तरफ ऊचाईयों पर चढ़ते जा रहे थे खाली रास्तो को देखकर अजीव सी भावनायें मन में आ रहीं थीं। हर 100 मीटर चलने के बाद लगता था कि यह जगह ठीक है यहां रुक कर फोटो सेशन करते है। लगभग हर जगह ही बस रुके रहने का मन करता रहेगा।
बादलों से घिरा हुआ वातावरण ठण्डी हवाएँ और घना जंगल ऊपर से खाली रास्ता निश्चित ही ये सब चीज़े साधारण नहीं कही जा सकती।
भले ही यह जगह छोटी है लेकिन इसका यह मतलब यह बिल्कुल नहीं है कि यहां कुछ खास नहीं है। सत्य तो यह है कि इस छोटी सी जगह में भी दुनिया के सबसे खूबसूरत नजारे मौजूद है। Landour की प्राकृतिक सुंदरता अपने साथ कई रहस्य समेटे हुए है, जाहिर तौर पर उनके बारे में आप यहाँ आकर ही जान पाएंगे।
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Ivy Cottage –
रस्किन बॉन्ड को कौन नहीं जानता? आप भी जानते होंगे दुनिया के सुप्रसिद्ध लेखक बॉन्ड का बचपन इसी जगह बीता। Landour की भव्य वादियों से ही उन्होंने अपनी लिखाई में नई भावनाओ को पिरोया। बचपन से बड़े होते हुए उन्होंने इसी जगह से कई कहानियां और कविताओं की रचना की। दुनिया के एक महान लेखक होने के नाते उन्होंने Landour के प्राकृतिक खजाने को उजागर किया।
Sister Market –
Landour के पहाड़ों की खूबसूरती आज दुनिया के लिए अनछुआ प्राकृतिक ख़ज़ाना है। Landour का सिस्टर मार्केट इसी ख़ज़ाने का खास हीरा है। सिस्टर मार्केट infinte ‘ 8’ वाली सड़क के एक छोर पर स्थित है। Landour, Mussoorie के इस सुन्दर पहाड़ी मार्केट में आपको कई भव्य कैफ और रेस्टोरेंट्स मिलेगे जिनमे से कुछ काफी प्रसिद्ध है।
Landour Bakehouse –
जैसा कि हमने आपको पहले बताया कि Landour एक ऐतिहासिक जगह है। पुराने दौर में 1830 के दशको के दौरान यहां के हर गांव में सामुदायिक ओवन हुआ करते थे। Landour का bakehouse उसी समय से ऐतिहासिक स्वाद को सहेजे हुए है। 1900 के दशक में ब्रेड बनाने के लिए Landour के निवासी इस सामुदायिक ओवन को चलाते थे। इसके साथ ही हर साल सभी पुराने व्यंजनों का दस्तावेजीकरण करते हुए ‘लंढौर कुकबुक’ प्रकाशित करते थे।
आज भी यह चलन जारी है Landour bakehouse अपनी ऐतिहासिक गरिमा को बनाए हुए हैं। अभी Landour bakehouse में buns, dessert, क्रोइसैन, कुकीज़, स्कोन्स, पुडिंग और स्वादिष्ट क्रेप्स बनाता है। इनका स्वाद भी वही पुराना है, साले गुजर गयी लेकिन स्वाद वही, तरीका वही।
यहां बैठने के लिए आपके लिए सबसे बेहतर जगह खिड़की के तरह वाली मेज है, इस खिड़की से आप सुंदर हिमालय और ओक के लंबे पेड़ों का अनोखा नज़ारा देख सकते हैं। यहां से गुजरती हुयी सड़कों का भी अद्भुत नज़ारा है पेड़ों की घनी छाया और साथ साथ चलता हसीन नज़ारा । यहां दीवार पर लगे एक काले बोर्ड पर लिखे कुछ शव्दों ने मुझे हैरानी में डाल दिया। लिखा था कि,
“हमारे यहां wifi उपलब्ध नहीं है, कृपया दिखावा करे कि आप 1980 के दशक में है और एक दूसरे से बात करे”
Landour bakehouse बेकरी के साथ साथ यहां बना कैफे भी अपने पुराने स्टाइल को सजावट और खाने के लिए काफी प्रसिद्ध है। आपको यहां का प्रमुख ‘स्ट्रॉबेरी क्रेप’ और ‘पीनट बटर क्रेप’ जरूर खाना चाहिए। लकड़ी की शानदार सजावट निश्चित ही आपका दिल जीत लेगी। दीवारो पर भी खास तरह की सजावट की गयी है। यहां बना रसोई घर भी पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र है जिसमें 19 बी सदी की सबसे बेह्तरीन सजावट और कारीगरी की गयी है।
अनिल प्रकाश स्टोर – (Landour, Mussoorie)
जरुर आप सोच रहे होंगे कि भला किसी स्टोर में ऐसा क्या खास होगा जिसके लिए इसे यहां लिखा जा रहा है। लेकिन आपकी विशेष जानकारी के लिए बता दूँ कि अनिल प्रकाश स्टोर किसी आम स्टोर से काफी अलग इतिहास रखता है। लण्ढोर की सबसे पुरानी दुकानों में से एक यह स्टोर अपने खास peanut butter के लिए दुनिया के लगभग हर हिस्से में प्रसिद्ध है।
1830 के दशक के दौरान लण्ढोर में रहने वाले अमेरिकी कारोबारियों द्वारा यह स्टोर खोला गया था। उन्होंने इसमे उस समय की सबसे आधुनिक मशीनरी और औजारों का उपयोग किया। बाद में जब अमेरिकी लोगों का यहां से जाना हुआ तो उन्होंने अपने पूरे स्टोर को भारतीय निवासी श्री अनिल प्रकाश जी को बेच दी। अनिल जी ने स्टोर की उन्हीं पुरानी मशीनों के साथ वही स्वाद आज तक संजोए रखा। आज अनिल प्रकाश स्टोर दुनिया की सबसे मशहूर दुकानों में से एक है।
समय के उस दौर में भी यह स्टोर काफी प्रख्यात था। यहा मिलने वाले घरेलू खाद्य पदार्थ चटनी, जैम, पी नट बटर और cheese अपने खास स्वाद और बेह्तरीन गुणवत्ता के लिए मशहूर है।
अनिल प्रकाश स्टोर से कोई भी खाद्य सामाग्री लेना लण्ढोर में सबसे बेहतर ऑप्शन है। इनके cheese और जैम का स्वाद आपको निश्चित ही मजेदार अनुभव महसूस करायेगा।
Prakash Handicraft Shop –
यदि आप गढ़वाल क्षेत्र के स्थानीय निवासियों द्वारा बनाए गए साज सज्जा के हस्त निर्मित उत्पाद खरीदना चाहते है तो पास ही स्थित Prakash Handicraft Shop पर खरीदारी कर सकते हैं। यहां निर्मित हो रहे सभी उत्पाद काफी खास ऑर दिलचस्प होते है। विदेशी पर्यटक यहां से काफी कुछ खरीद कर ले जाते हैं।
चार दुकान –
मसूरी की भीड़ भाड़ से Landour की दूरी मात्र 5 किलोमीटर है। जब आप Landour के लिए आगे बढ़ रहे होंगे उसी दौरान आपको रास्ते में चार दुकान नामक जगह मिलेगी। जैसा कि नाम से प्रतीत होता है एकसाथ चार ऐतिहासिक दुकाने है जो मसूरी के ‘सिस्टर बाजार’ के नजदीक स्थित है।
लंढौर के प्रसिद्ध लैंग्वेज स्कूल में पढ़ने वाले विदेशी छात्रों की घरेलु जरुरतों को पूरा करने के लिए यह दुकाने खोली गई थी। यहां मौजूद लगभग दुकान पर पहाड़ी क्षेत्रों के अनुकूल खाने योग्य चीज़े मिलती है। जिसमें खास तौर पर चाय, मैगी, पराठा, पकौड़े, कॉफी और ब्रेड टोस्ट शामिल है। यहां स्थित टीप टॉप और अनिल कैफे ऐसी दुकाने है जो 50 से भी अधिक साल पुराने होने का पुख्ता दावा करती है। Landour में रहने वाली हर बड़ी हस्ती ने इन्हीं दुकानों से सामान खरीदा है।
केलॉग्स मेमोरियल चर्च
8 के बनावट जैसी सड़क के ठीक सिरे पर बनी यह प्राचीन चर्च वास्तविकता में उस दौर की बेह्तरीन कला का प्रदर्शन करती है। में जब भी यहां आया हूँ दुर्भाग्य से मैंने इसे हमेशा बंद ही पाया है। चर्च पुराने ज़माने की याद दिलाती है, इसमे लगे खिड़कियों के काँच पर विशेष तरह के रंगीन चित्र है। रंग बिरंगे कांच चर्च की खूबसूरती को और अधिक सुन्दर बना देते हैं।
सन 1903 के दौरान सम्पूर्ण चर्च को गोथिक स्थापत्य शैली का उपयोग करते हुए प्रेस्बिटेरियन चर्च के रूप में तैयार किया गया था । चर्च का नाम यहां रहने वाले अमेरिकी मिशनरी डॉ. सैमुअल केलॉग के नाम पर रखा गया था, जिन्होंने लैंडौर के विकास में बहुत सहयोग किया था ।
Landour Language School –
चर्च के नजदीक ही अंग्रजी हुकूमत के दौरान बना Landour Language School है। अंग्रेजी शाशन के दौरान वो लोग इसी स्कूल में हिंदी भाषा सीखते थे। डॉ सैम्युअल केलॉग ने अंग्रेजो को हिन्दी सीखने के लिए काफी प्रभावित किया। उन्होंने हिंदी व्याकरण पर एक शानदार किताब लिखी जिससे अंग्रेजो को हिन्दी सीखने में काफी सहूलियत मिली।
आज भी यह स्कूल सुचारु रूप से संचालित है। अब इस स्कूल में हिंदी, अँग्रेजी, उर्दू, पंजाबी और गढ़वाली भाषाएँ सिखाई जाती है। यहां पढ़ने वाले विद्यार्थियों में स्थानीय और विदेशी छात्र शामिल है।
Landour Winterline –
आपको जानकर बड़ी हैरानी होगी कि समूचे विश्व में ऐसी सिर्फ दो ही जगह है जहां Winterline देखने को मिलती है। दरअसल Winterline एक दुर्लभ वायुमंडलीय घटना है वायुमंडल की उन विशेष परिस्थियों का परिणाम है जब गर्म हवा ठण्डी हवा के नीचे दब जाती है। इस तरह की खास परिस्थिति पूरी दुनिया में सिर्फ Mussoorie, उत्तराखंड में देखने को मिलती है या फिर Switzerland में ।
अब आप शायद इस खास जगह की महत्ता को समझ सकते हैं। यूँ ही नहीं Mussoorie को पहाड़ों की रानी कहा जाता है। Landour की इन्हीं खासियत की वज़ह से यह दुनिया की जानी मानी हस्तियों का घर रहा है। चाहें सचिन तेंदुलकर की बात हो या रस्किन बॉन्ड की एक से एक महान हस्तियों ने Landour में अपना सुकूं ढूँढा है। Winterline का खास नज़ारा सूर्यास्त के समय देखा जा सकता है।
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सेंट पॉल चर्च –
एक और प्राचीन छावनी जिसे अँग्रेजी हुकूमत के दौरान बनवाया गया था। सेंट पॉल चर्च अंग्रेजो का एक ऐसा प्राथना घर था जहां उन्हें अपनी राइफल्स के साथ चर्च जाने की अनुमति थी। चर्च का निर्माण कार्य 1804 में संपन्न हुआ था। उस दौरान ब्रिटिश सैनिक अपने हथियारों के साथ इसी चर्च में प्राथना करते थे।
चर्च में प्राथना के समय अक्सर ब्रिटिश सैनिकों के हथियार चोरी हो जाते थे। यही कारण था कि बाद में , 1857 में सेंट पॉल चर्च में लकड़ी के खंभों में राइफल नुमा पायदानों की गहरी कतारें उकेरी गईं, जहां पर अंग्रजी सैनिक प्राथना के दौरान अपनी राइफलें रखते थे।
Landour में यह सेंट पॉल चर्च एक खूबसूरत प्राकृतिक एहसास दिलाती है। पहाड़ों की गगनचुंबी ऊचाईयों पर ईश्वर से प्राथना करना, ऐसा प्रतीत होता है जैसे हम ईश्वर के अधिक करीब है। चर्च के आसपास लगे देवदार के पेड़ और पूरा माहौल बेहद शांति नुमा और देखने योग्य है। यदि आप शांति को पसंद करने वाले इंसान है तो Landour की सैंट पॉल चर्च घुमाना एक उचित निर्णय रहेगा।
Emily Restaurant by Rokeby Manor –
Emily लण्ढोर का सबसे महँगा और शानदार रेस्तरां माना जाता है। यहां पर उपलब्ध हर व्यंजन का स्वाद बहुत ही लजीज माना जाता है। सिर्फ स्वाद ही नहीं बल्कि इसकी पूरी रंगत ही काफी अनोखी और खूबसूरत है। यहां ना सिर्फ इंडियन बल्कि हर तरह का विदेशी खाना भी उपलब्ध होता है। यहां मिलने वाली एक खास डिश ‘स्टिकी टॉफ़ी पुडिंग’ काफी प्रसिद्ध है।
रेस्तरां की भीतरी सजावट काफी हद तक देहाती एहसास दिलाती है। भूरे रंग की ईंटों से बनी दीवारें आपको पुराने ब्रिटिश दिनों की याद दिलाएगी। यहां किताबों का और अलग अलग तरह की ब्रेड-सैंडविच की भरमार है। यहां उपयोग होने वाली ब्रेड खास Landour bakehouse से मंगाई जाती है। कुलमिलाकर Landour में एमिली रेस्त्रां एक घूमने योग्य जगह है ।
Ruskin Bond house –
यह पता लगाना थोड़ा सा मुश्किल लगता है कि रस्किन बॉन्ड की वज़ह से Landour मशहूर हुआ या Landour की वज़ह से रस्किन? लेकिन मुझे लगता है कि Landour की खूबसूरती ही दुनिया में इसके मशहूर होने की असली वज़ह है। रस्किन बॉन्ड को ब्रिटिश मूल का भारतीय लेखक माना जाता है। उन्होंने बाल साहित्य में कई रचनाये की।
Landour में उनका घर बेहद खूबसूरत जगह पर स्थित है। मेरा मानना था कि अगर उनके घर के पास में घूमने जाए तो शायद उन्हें देखने का मौका मिले लेकिन जैसा कि हमेशा होता है, वो मुझे नहीं दिखे। बॉन्ड का घर Doma inn के ठीक बगल में स्थित है।
Lal Tibba
मसूरी का या माना जाए तो Landour की सबसे ऊँची चोटी है लाल टिब्बा। यहां से दिखने वाला नज़ारा पर्यटकों के बीच खास आकर्षण का केंद्र है। दरअसल पहाड़ी भाषा में सूरज को टिब्बा कहा जाता है। सुबह और शाम के समय इस चोटी पर आसमान पूरी तरह लाल दिखता है और सूरज का रंग भी सुर्ख लाल ही दिखता है। यही कारण है कि इस जगह को लाल टिब्बा कहा जाता है, अर्थात ‘लाल सूरज’।
यहां से दिखने वाला प्राकृतिक दृश्य इतना मनोरम है कि यह आपकी आँखों के लिए स्वर्ग जैसी अनुभूति है। सामने बर्फ से ढका हुआ विशाल हिमालय और शांतिपूर्ण ठंडा पहाड़ी वातावरण। बादलों के बीच खड़े आप इतने हसीन लगते है कि आम घरेलू दिनों में इस तरह के अनुभव की कल्पना भी नहीं की जा सकती। धर्मिक भावनाओ से संबंधित एक विशेष बात यह भी है कि यहां से चारो धाम को नमन किया जा सकता है।
यहां बने दो खास रेस्तरां इस नजारे को देखने में अहम भूमिका निभाते है। इनकी छत पर लगी दूरबीन से या बिना दूरबीन के भी इस खूबसूरत नजारे को देखा जा सकता है। गरम गर्म कॉफी के साथ हिमालय के पहाड़ों को निहारने से अच्छा कुछ भी नहीं है। लाल टिब्बा के बारे में अधिक जानकारी के लिए यहां क्लिक करें…
जबरखेत नेचर रिजर्व –
वन्य जीवों और घने पहाड़ी जंगलों की सैर करने के लिए आपको जबरखेत नेचर रिजर्व में जरुर जाना चाहिए। Landour से मात्र पांच किलोमीटर की दूरी पर स्थित यह नेचर पार्क, Landour की सबसे खास और खूबसूरत जगहों में से एक है। यहां आप तेंदुए, हिरण और कीड़ों की ढेरों वैरायटी के साथ साथ अन्य कई वन्य जीवों को देख सकते हैं। जबरखेत नेचर रिजर्व के प्रबंधन द्वारा आपको इसे घूमने की इजाजत मिलती है। तकरीबन दो से तीन घंटे की चढ़ाई के साथ साथ आप इस नेचर पार्क को करीब से देख सकते हैं।
लंढौर, उत्तराखंड घूमने के लिए सबसे अच्छा मौसम –
साल के हर मौसम में यहां घूमने आया जा सकता है। हर मौसम में आपको यहां अलग नज़ारा देखने का मौका मिलता है। पर्सनली मुझे Landour घूमने का सबसे अधिक आनंद बरसात के मौसम में आता है। आप चाहे तो यहां सर्दियों में या किसी भी मौसम में आ सकते हैं। यहां का मौसम हमेशा ठंडा रहता है इसलिए अपने साथ गर्म कपड़े जरूर लेकर आए।
बैसे अधिकतर पर्यटक यहां गर्मियों के मौसम में आते हैं। अप्रैल जून की चिलचिलाती धूप से बचने के लिए मसूरी एकदम सही जगह है।
बर्फ का आंनद लेने के लिए लोग यहां सा सर्दियों में आना भी काफी पसंद करते हैं। यह पूरी तरह आपके ऊपर निर्भर करता है कि आपको किस मौसम में यहां सबसे अधिक अच्छा लगता है।
मेरा मानना है कि आपको यहा Oct से Nov के दौरान जाना चाहिए। भाग्यशाली रहे तो आपको Winter line देखने का भी मौका मिलेगा। Landour में कभी भी भीड़ भाड़ नहीं होती इसलिए शांति और सकूँ की तलाश में घूमने वाले लोग यहां अच्छा समय बीता सकते है।
लंढौर, मसूरी कैसे पहुँचें –
दरअसल लंढौर की मसूरी का हिस्सा माना जाता है और यह मसूरी की भीड़ भाड़ से मात्र 7 km की दूरी पर स्थित है। लंढौर की खास बात यह है कि मसूरी के इतने नजदीक होने के बाद भी यह हिस्सा अभीतक अनछुआ सा है। यहां भीड़ भाड़ बिल्कुल भी नहीं सिर्फ हसीन नजारे और शांति है।
By Road –
दिल्ली से देहरादून के लिए बस या टैक्सी पकड़ कर सीधा देहरादून पहुचे यहां से आप सरकारी बस पकडने के लिए मसूरी बस स्टेशन पर आ सकते हैं। यहां आकर आपको मसूरी के लिए बस और कैब उपलब्ध मिलेगी। सरकारी बस से देहरादून से मसूरी जाने के लिए मात्र 80 रुपये का टिकट है जब कि पर्सनल कैब से आप 1500 से 2000 रुपये में मसूरी पहुच पाते है।
मसूरी पहुंचने के बाद आप लंढौर के लिए मौसम और नजारे का आनंद लेते हुए पैदल भी पहुंच सकते हैं। समतल भूमि में रहने वाले लोगों के लिए पहाड़ों पर पैदल चलना बड़ी चुनौती बन जाता है। आप चाहे तो यहां से टैक्सी और खच्चर से भी Landour पहुंच हैं।
By एयर –
सबसे नजदीकी एयरपोर्ट jolly grant एयरपोर्ट है जो देहरादून पहुंचा देगा और बाद में टैक्सी करके Landour पहुंचा जा सकता है।
By Train –
नजदीकी रेल्वे स्टेशन भी देहरादून का ही है बाकी प्रक्रिया एक जैसी ही है। ट्रेन की टाइमिंग चेक करने के लिए http://www.irctc.co.in/ पर visit करे।
मसूरी से लंढौर
मसूरी के पिक्चर प्लेस से लंढौर की दूरी करीब साढ़े तीन किलोमीटर रह जाती है। यदि आप एक स्वस्थ्य इंसान है तो यह दूरी मसूरी की सुंदरता को देखते हुए पैदल भी तय की जा सकती है। मेरी व्यक्तिगत राय है कि पहाड़ी क्षेत्रों में घूमने का मजा पैदल अधिक है।
लेकिन यदि आप किसी रोग से ग्रसित है तो जाहिर है आपको माल रोड से किसी कैब को बुक करना चाहिए। क्योंकि यहां की सड़कों पर हर कोई गाड़ी नहीं चला सकता। कैब ड्राइवर आपको मसूरी से लंढौर तक छोड़ने के 400 से 500 रुपये कराए के लेगा।