क्या हस्तिनापुर हकीकत का शहर था? क्या महाभारत एक परमाणु युद्ध था? क्या द्रोणाचार्य quantum क्रिया का उपयोग करते थे? क्या प्राचीन भारत में परमाणु ऊर्जा का उपयोग होता था? प्राचीन हस्तिनापुर आज कहां स्थित है? क्या इसके सबूत है?
ऐसे कई सवाल जो आपको ह्रदय की धड़कने बढ़ाने के लिए आतुर होंगे। सदियों से, महाभारत और हस्तिनापुर शहर ने हमारी पीढ़ियों को मंत्रमुग्ध कर दिया है। यद्यपि वास्तव में समय बीतने के साथ हस्तिनापुर स्वयं लुप्त हो गया और इसके अस्तित्व पर संदेह होने लगा। फिर भी, ऐसे कई सबूत हैं जो दिखाते हैं कि हमारी पौराणिक कथाएं वास्तव में प्राचीन इतिहास हैं। एक ऐसा इतिहास जो हमारे वर्तमान समय, हमारे विश्वासों और व्यवहारों का दर्पण हो सकता है, अगर हम इसकी अनुमति देंगे तो।
क्या महाभारत परमाणु युद्ध था?
महाकाव्य महाभारत के बारे में कई तरह के कयास लगाए जाते है, धार्मिक आस्थाओं को एक तरफ रख कर यदि इस बारे में विचार किया जाए – की क्या वास्तविकता में समय के उस दौर में परमाणु ऊर्जा का उपयोग किया गया होगा? सवाल चाहे जो भी हो और सोच भी चाहे जो हो लेकि यदि बात यकीन की आती है तो सबूतों की आवश्यकता तो होती ही है। जबतक की सबूत ना हो विज्ञान कुछ नहीं मानता और आज कुछ ऐसे सबूतों की पेशकश की जा सकती है जो दुनिया, देश और विज्ञान को यह सोचने पर मजबूर करेगे की महाभारत एक परमाणु युद्ध था ।
यूरोपीय इतिहासकार और महान शोधकर्ताओं,में से एक डेविड डेवनपोर्ट और एटोर विंसेंटी ने मोहनजोदड़ो की प्राचीन सभ्यता वाली जगह में और उस जगह के आसपास कुछ आधारभूत कार्य किए। जहां उन्होंने उत्खनन किया उन्हीं में से कुछ स्थलों पर , उन्हें ऐसे सबूत मिले जिन्हें देखकर सबका अचंभित होना लाज़मी था। सबूत यह बताते हैं कि प्राचीन शहर एक शक्तिशाली विस्फोट से बर्बाद हो गया होगा।
शोधकर्ताओं को वहां मिट्टी और क्रिस्टलीकृत हरे कांच का एक बड़ा हिस्सा मिला, जो इसके उपरिकेंद्र (epicenter) पर जुड़ा हुआ और पिघला हुआ था। इस उपरिकेंद्र के चारों ओर की ईंटें भी एक तरफ से पूरी तरह पिघली हुयी थी यह सारे सबूत यह दर्शाते है कि यहां निश्चित रूप से कोई विस्फोट ही हुया था जिस कारण से पूरा शहर तबाह हो गया। इससे एक स्पष्ट निष्कर्ष निकलता जो आप समझ सकते है।
मैनहट्टन प्रोजेक्ट के निदेशक डॉ. जे. रॉबर्ट ओपेनहाइमर को “परमाणु बम के जनक” के रूप में श्रेय दिया जाता है। उन्होंने 1933 में संस्कृत सीखी और मूल रूप में भगवद गीता पढ़ी।
मैनहट्टन परियोजना के तुरंत बाद, डॉ. ओपेनहाइमर ने रोचेस्टर विश्वविद्यालय के छात्रों को संबोधित किया। छात्रों में से एक ने उनसे एक सीधा सवाल पूछा कि क्या उनका प्रयोग दुनिया का पहला परमाणु विस्फोट था?
उन्हें बड़े सोच समझकर और विचार कर के जबाब दिया और कहा – हाँ ” आधुनिक समय में, बिल्कुल।।
डॉ. ओपेनहाइमर द्वारा दी गई सतर्क प्रक्रिया से लोगों के बीच सवालों के पुल बनने लगे। डॉ द्वारा दी गई प्रक्रिया वास्तविकता में असहज थी उनके कहने का अर्थ था कि , प्राचीन सभ्यताओं में भी परमाणु ऊर्जा और बॉम्ब का उपयोग किया जा चुका था। उनकी यह प्रक्रिया किसी को भी आश्चर्यचकित करती है कि क्या वह मानते थे कि पहले की सभ्यता में परमाणु क्षमता हो सकती थी।
जब उन्होंने परमाणु का पहला विस्फोट किया उस समय उन्होंने गीता का हवाला देते हुए उन्होंने भारतीय प्राचीन सभ्यताओं की तरफ इशारा करना चाहा था कि उन लोगों में वह क्षमता थी।
उन्होंने इस बात की पुष्टि “अस्त्र” (मंत्रों के द्वारा चलने वाली एक मिसाइल) नामक शब्द से करना चाही। अस्त्रों के ज्ञान से उन्होंने उन्होंने कुछ जाना और आधुनिक युग में इतना बड़ा अस्त्र पैदा किया जो परमाणु बॉम्ब के नाम से प्रख्यात हो गया।
भारतीय ग्रंथ उस विशेष तरीके का वर्णन करते हैं जिसमें इन अस्त्रों का आह्वान किया गया था। सैनिकों द्वारा हाथ में लिए गए “शस्त्र” जैसे गदा, तलवार, भाले, धनुष और तीर जैसे हथियार की तुलना में प्रत्येक “अस्त्र” (विनाशकारी मिसाइल जैसे परमाणु बॉम्ब) से व्यक्तिगत निर्वहन की संख्या, रंग, आकार और तीव्र गति के साथ-साथ बेहद विनाशकारी होते थे ।
किसी भी बड़े बॉम्ब (शस्त्र) को बनाने का सबसे प्राचीन इतिहास भारतीय ग्रथों में ही लिखा हुआ है। बेशक शस्त्र बनाने की विधि ना लिखी हो पर शस्त्र जैसा कुछ पहले था इस बात का ग्यान होना ही हमे आजकल के परमाणु या कोई भी बड़ा बॉम्ब बनाने के करीब ले गया।
शायद डॉ को गीता से प्रेरणा मिली थी कि कोई ऐसा शस्त्र बनाया जा सकता है, जो सबसे विनाशकारी हो सकता है। इसीलिए उन्होंने विस्फोट के दौरान गीता का हवाला दिया।
महाभारत के दौरान दोनों पक्षों में से कुछ ही लोगों के पास अस्त्र थे जैसे पांडवों की तरफ “अर्जुन” के पास और कौरवों की तरफ “कर्ण” के पास।
ग्रंथों में दोनों ही योद्धाओं कर्ण और अर्जुन के बारे में लिखा है, ग्रंथों में उन्हें उच्च इच्छा शक्ति, धैर्य, सहनशीलता और दूरदर्शिता के साथ स्तर के नेतृत्व वाले योद्धाओं के रूप में वर्णित किया गया है। उन्होंने ये अस्त्र बड़ी तपस्या और धैर्य रखने के बाद प्राप्त किए थे।
जितने भी अस्त्र उस समय थे वह भयानक विनाशकारी थे जिनका प्रभाव प्रकृति को हिला देने वाला था। उनका विनाश कितना भयंकर हो सकता था यह आज हमारी सोच से परे है।
तत्काल में महाभारतकालीन कई शोध चल रहे हैं और यदि भविष्य के शोध यह साबित करते हैं कि महाभारत उन सभी उन्नत तकनीकों के साथ लड़ा गया था जो आज तक खोजी भी नहीं गयी है और वह सबसे बड़ा युद्ध था, तो यह वास्तव में भारत के लिए एक जागृत कॉल और भारत को अपने आप को समझने की आवश्यकता है। परमाणु हथियारों के इस युग में महाभारत युद्ध का अध्ययन करना और समझना और इससे सबक लेना बुद्धिमानी होगी।
क्या हस्तिनापुर शहर असली था?
यदि हस्तिनापुर नहीं होता तो शायद महाभारत जैसा महान महाकाव्य कभी पूरा नहीं होता। महाभारतकालीन युग का एक ऐसा शहर को सबसे शक्तिशाली और धनी था और जहाँ पर कौरवों का शासन था। पांडवों द्वारा लड़े गए युद्ध इसी शहर के राज काज को लेकर था। इस शहर का नाम कुरु राजा हस्तिन के नाम पर रखा गया था। एक शक्तिशाली शहर, हाथी जैसी ताकत वाला या , हाथियों की अपनी बड़ी सेना या हस्ती (हाथियों के साथ) जैसा कि उन्हें संस्कृत में कहा जाता है।
जब भारत आजाद हुया तो विशेष रूप से सभी साक्ष्य ढूढ़ने के प्रयास शरू किए गए। सदियों बाद, स्वतंत्र भारत में, इस प्राचीन शहर की खुदाई के लिए मेरठ के पास एक शहर को साइट के रूप में चुना गया था। यह शहर हस्तिनापुर की तरह ही गंगा के किनारे बसा है। प्रसिद्ध पुरातत्वविद् प्रोफेसर BB LAL के तहत 1950 में खुदाई शुरू हुई और एक शहर के प्राचीन अवशेषों की खोज की गई।
खुदाई के बाद मिट्टी की परतों ने बीच-बीच में समय अंतराल के साथ निपटान की विभिन्न अवधियों को प्रकट किया। तल की एक परत पर, गंगा नदी की मिट्टी के साक्ष्य थे, जो उस समय हुई बाढ़ की ओर इशारा करते है ।
1920 में उल्टा खेरा और रघुनाथजी नामक दो टीले की खुदाई की गई और इन स्थलों से विभिन्न प्राचीन कलाकृतियां बरामद की गईं। इनमें से सबसे प्राचीन और खास चित्रित ग्रेवेयर मिट्टी से बने हुए बर्तन थे जो कि बहुत ही महीन मिट्टी से बने होते हैं और इस क्षेत्र में पाए गए ऐसे साक्ष्य अद्वितीय हैं।
प्रोफेसर यह कहते हुए एक महत्वपूर्ण अवलोकन करते हैं कि यह ग्रेवेयर(महीन मिट्टी का रूप) लगभग 720 ईसा पूर्व की अवधि को इंगित करता है, लेकिन चूंकि सभी नमूने रूटलेट्स से दूषित हो चुके हैं, इसलिए इनका ज्यादा मूल्य नहीं हो सकता है। हालांकि, वह बताते हैं कि उसी क्षेत्र से गेरू रंग के मिट्टी के बर्तनों को 2650 ईसा पूर्व के लिए दिनांकित किया जा सकता है।
महाभारत के बाद का हस्तिनापुर कैसा था?
कुरुक्षेत्र में हुयी महाभारत की लड़ाई के बाद पांडव हस्तिनापुर में बस गए। महाभारत के बाद के काल में राजा निचक्षु ने राज्य किया। वह अर्जुन के परपोते जनमेजय के बाद छह पीढ़ियों तक जीवित रहे।
मत्स्य पुराण और वायु पुराण में कहा गया है कि राजा निचक्षु के शासन के दौरान, गंगा में एक बड़ी बाढ़ आई थी, जिसने हस्तिनापुर का अधिकांश भाग डूब गया था। इस प्रकार, उन्हें इस बाढ़ ने अपनी राजधानी को कौशाम्बी में स्थानांतरित करने के लिए मजबूर किया गया, और वह नीचे की ओर और यमुना के किनारे के पास बस गए ।
यह है पूरी हकीकत –
“जब नागसहवाय हस्तिनापुर शहर गंगा द्वारा आयी बाड़ में बह गया, तो राजा निचक्षु ने इसे त्याग दिया और कौशाम्बी चले गए। ”
समझने वाली बात यह है कि – पुराण में लिखे हुए कथन, स्थल और तिथि दोनों में बाढ़ की परत की पुरातात्विक खोज से मेल खाता है।
प्रो. बी.बी.लाल ने उन लोगों से यह कहा जो इतने सबूतों को नहीं मानना चाहते कि : “पुरातत्व विभाग भगवान कृष्ण के मक्खन के बर्तन को गिराए जाने का प्रमाण नहीं दे सकता”।
पुराणिक आंकड़ों और लेखों से, हम पाते हैं कि राजा निचक्षु पांडवों के बाद लगभग 10 पीढ़ियों तक जीवित रहे थे । एक नई पीढ़ी के आने के लिए औसतन 25 से 30 साल की अवधि मानकर, महाभारत के बाद राजा निचक्षु शायद 250 से 300 साल तक जीवित रहे होंगे ।
महाभारत लगभग 3000 ईसा पूर्व में हुआ हुआ था और राजा निचक्षु ने 250 से 300 साल शासन किया। और यह तारीख (खुदाई में मिले) गेरू कॉलर वाली मिट्टी के बर्तनों (2650 ईसा पूर्व) की तारीख से मेल खाती है।
लेख का श्रोत और जानकारी @bharathgyan को जाता है, जो पुरातात्विक खोज से इतिहास के टुकड़ों को जोड़ने की कोशिश करते है।
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