वेद क्या है इस बात की व्याख्या की जा सकती है लेकिन वेदों में क्या है इस बात की व्याख्या कभी नहीं की जा सकती। वेद ग्यान के उस सागर की तरह है जिसका कोई अंत या छोर नहीं है, यह असीम और अनंत ज्ञान का भंडार है। लेकिन ज्ञान की अनुभूति सिर्फ एक ज्ञानी को होती है अर्थात् जो स्वयं ज्ञानी पुरुष है वह ज्ञान की प्राप्ति करने का हकदार होता है और वह ज्ञान की इज्जत करता है। वेदों में छुपे सफलता के ऐसे राज जो सफल लोगों द्वारा अपनाए गए
उसी प्रकार हर इंसान के लिए वेदों से ज्ञान प्राप्त करना सम्भव नहीं है, वेदों से ज्ञान लेने वाला व्यक्ति पहले से ही ज्ञानी होना चाहिए। यानि कि ऐसे लोग जो वेदों के निर्देशों की अवेहलना करते हैं और वेदों को मात्र एक मामूली किताब या कागज के टुकड़ों से अधिक नहीं समझते वेद उनकी समझ से परे है।
ज्ञान उसी को मिलता है जिसके भीतर ज्ञान को पाने की जिज्ञासा हो अर्थात् ज्ञान ज्ञानी को ही मिलता है, दूसरों का तिरस्कार करने वाले और नकारात्मक प्रभाव से ग्रसित लोगों को कभी ज्ञान की प्राप्ति नहीं होती है। यह बात भी हमे वेदों से ही पता चलती है।
वैज्ञानिकों ने अपनी खोजो से पहले पढें है सनातन ग्रंथ और वेद –
जी हाँ जिस गीता में और रामायण में आज दिलचस्पी छोड़ चुके है उसी गीता को आधार मानकर दुनिया का पहला परमाणु बॉम्ब बनाया गया या यूं कहा जाए कि परमाणु ऊर्जा क्या है यह भी वेदों ने अपनी ही भाषा में समझाया है जिससे प्रभावित होकर विदेशी वैज्ञानिकों ने नई नई चीज़ों की खोज की और अपने नए नाम चिपका दिए। हालांकि इस समय आप इस तरह की बातों की तह में नहीं जायेगे लेकिन आपको भरोसा हो जाए इसलिए में आपको कुछ अन्य लेख बता देता हूँ जहा पूरे सबूतों के साथ यह सब साबित हुआ कि परमाणु बॉम्ब का निर्माण गीता से प्रभावित होकर हुआ।
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सिर्फ यही नहीं बल्कि ऐसी कितनी ही खोजे की गयी जो हमारे ग्रथों की देन है, हमारे प्राचीन पुस्तकालयों से ज्ञान प्राप्त करके उन्हें को जला कर नष्ट कर दिया गया। हमारे प्राचीन ग्रंथों को अंग्रेजो द्वारा लूट लिया गया और वे अपने साथ ले गए और नए नए अविष्कार करते गए।
सोचने वाली बात यह है कि प्राचीन काल में भारत विश्व गुरु नहीं था तो दुनिया भर से लोग शिक्षा पाने के लिए तक्षशिला जैसे विद्यालय में क्यों आते थे। आखिर क्यों दुनिया के हर लुटेरे को भारत ने आकर्षित किया?
क्योंकि भारत खुद में समृद्ध था और इसके पतन के पीछे का कारण है देश में छुपे गद्दार।
हालांकि हमारा मुद्दा यह नहीं, हमारा मुद्दा है कि वेदों में हमारी सफ़लता के लिए ऐसा क्या है जो सफल लोगों द्वारा उनका अनुसरण किया गया। मैंने ऊपर जो बाते बताई वह सिर्फ इसलिए ताकि आप प्राचीन भरतवर्ष की ताकत और क्षमताओं का अंदाजा लगा सके और समझ सके कि ये वेद किस तरह से लिखे गए होंगे।
तो आइये जानते हैं, कि हमारे प्राचीन वेदों में वह कौन-से रहस्य है, जो लोगों को हर युग में सफल होने की कुंजी दिलाते है :
वेदों के अनुसार सफल कैसे बने?
वेदों को भोग के अधिकार को धर्म का एक अंग माना जाता है। अब यह भी सत्य है कि Enjoyment (भोग) ही ईश्वर और आत्मा का सार है। वेदों में यह बात साफ बताई गई है कि हम यहा ईश्वर द्वारा निर्धारित कर्तव्यों का पालन करने के लिए है। वेद हमे बताते हैं कि हमे यहां (संसार में) क्या करना चाहिए कैसे रहना चाहिए इत्यादि। वेदों का अनुसरण करते हुए धर्म के मार्ग पर चलने पर यदि आपको आंनद मिलता है तो इसमें कोई भी पाप नहीं है।
वेदों की द्वारा बताये गये विचारो का पालन करते हुए आप सफल हो सकते हैं। जिन लोगों ने ऐसा किया उनमे देखे गए परिणाम अत्यधिक प्रभावी हैं –
दिशा :
एक ऐसा मार्ग या दिशा, जहां आप अपने आप को अपने द्वारा चुने गए विशेष मार्ग पर हर संभव तरीके से कार्रवाई के लिए प्रतिबद्ध होते हैं। सफल होने के वेद यह बात पहली उपलब्धि मानते है, जब आप किसी दिशा में होते हैं सरल शब्दों में कहा जाए तो अपने लक्ष्य का निर्धारण करना, आपकी सफ़लता की ओर पहला कदम है।
अभ्यास:
जब आप अपनी एक दिशा में होते है अर्थात आप अपने लक्ष्य को निर्धारित कर चुके होते है उसके बाद आपको अभ्यास करने की आवश्यकता होती है। अपने लक्ष्य को पाने के लिए हर सम्भव प्रयास करने से पहले की तैयारी ही अभ्यास है। अभ्यास, निर्धारित विधियों का नियमित और निरंतर अभ्यास।
श्रद्धा :
अपने लक्ष्य के प्रति आपका विश्वास और समर्पण का भाव जो कि बनावट से नहीं बल्कि आपके भीतर से आता है। वह होना चाहिए। एक जुनून होना चाहिए जो आपको आपके लक्ष्य के प्रति बफादार बनाता है। जब आप किसी भी लक्ष्य को चुनते है या किसी को पाने की चाहत करते है तब आपका जुनून प्राकृतिक होता है और आपके लक्ष्य के प्रति वही श्रद्धा होती है। श्रद्धा, अपने तरीकों के प्रति , अपने विश्वासों के प्रति और अपने लक्ष्यों में विश्वास और दृढ़ विश्वास रखना।
वीरता :
वीर यह शब्द दुनिया का सबसे सबसे प्रेरणा दायी शब्द है। और हमारे वेद हमे बताते है कि सफ़लता पाने के लिए या सफ़ल व्यक्तित्व हासिल करने के लिए आपके भीतर अपने लक्ष्यों की प्राप्ति की लड़ाई लड़ने के लिए वीरता का भाव होना चाहिए। यदि आपको सफ़लता चाहिए तो आपको हर कसौटी पर खरा उतरना होगा और अपने लक्ष्य के प्रति उसे पाने के लिए वीरता दिखानी ही होगी। अर्थात वेद कहते है सफल होने के लिए आपको वीरों की भाँति अपने लक्ष्य की ओर अग्रसर रहना होगा।
स्वाध्याय :
स्वाध्याय, अर्थात् अपने आत्म-प्रयास से उस ज्ञान को सीखना जो आपके अभ्यास के लिए महत्वपूर्ण है।सरल शब्दों में कहा जाए तो अपनी आत्मा से सीखना। वेद हमे सफल होने के लिए आत्मचिंतन करने पर जोर देते हैं। वेद बतातें है कि किस तरह इंसान अपनी आत्मा के ज्ञान से हर असंभव कार्य को सम्भव कर सकता है। अपने लक्ष्य को ध्यान में रखते हुए, अपनी आत्मा की सीख ले। यह आप ध्यान (मेडिटेशन) करके करते है।
स्मृति :
स्मृति, अर्थात आपकी याददाश्त आपकी याद रखने की क्षमता तीव्र होनी चाहिए। वेद बताते है कि किस तरह आप अपने अहार को सात्विक करके अपनी स्मरण शक्ति को बड़ा सकते हैं और मजबूत कर सकते हैं। वेद कहते है याद रखना और दूसरों से सीखना, अपने गुरु से और अपनी और दूसरों की पिछली विफलताओं से सीखना और अपनी गलतियों से जो सबक लिया उसे याद रखना चाहिए ।
प्रज्ञा :
प्रज्ञा, अर्थात् बुद्घि आपकी बुद्धी आपको अपने फैसले लेने में विशेष रूप से मदद प्रदान करती है। आपके भीतर समस्याओं का पूर्वाभास करने और सही निर्णय लेने की बुद्धि होनी चाहिए । यदि आप अक्सर गलत फैसले लेते है तो आपको अपने अभ्यास पर ध्यान देना चाहिए।
समाधि :
अपने कार्य को इस तरह करना की आपको समाधि का एहसास हो यानी कि आपको अपने कार्यों के प्रति पूर्ण रूप से एकाग्र होना चाहिए। एकाग्रता ही आपको प्रगति की तरफ ले जाती है। लक्ष्य के प्रति आप जो करते हैं और जो आप चाहते हैं उसमें समाधि, एकाग्रता और पूर्ण अवशोषण होना चाहिए ।
वैराग्य :
वैराग्य, अर्थात् अपनी बुद्धि अपनी इन्द्रियों पर आपका पूर्ण नियंत्रण ताकि आपके लक्ष्य और आपके बीच आने वाली कोई भी स्थिति कोई भी वस्तू आपको भ्रमित ना कर सके। वैराग्य आपके मन की वह अवस्था है जब आप अपनी इच्छाओं पर पूरी तरह काबु पा लेते है और ऐसा कुछ नहीं होता जो आपको आपके लक्ष्य से भ्रमित कर सके। वैराग्य के साथ अपने जुनून और भावनाओं को नियंत्रण में रखना आपको सफलतम व्यक्ति बनाता है ।
तप :
तपस्या अर्थात आपको अपने मन को अपने तन को इतना अधिक तपा लेना कि कोई भी दुख आपको दुखी नहीं कर सके या कोई भी विपत्ति आपका हौसला ना तोड़ सके। आप अपनी तपस्या करके इतने मजबूत होते है कि कोई भी नकारत्मक विचार आपके मन को प्रभावित नहीं कर सकता और आप अपने तन को भी इतना मजबूत कर लेते है कि कोई आपसे बलपूर्वक भी नहीं जीत सकता। तपः तन, मन और वाणी की तपस्या।
समथवमी :
आप एक ऐसे मन के मालिक होते हैं जब आपको सफ़लता और असफ़लता किसी से भी कोई नकारत्मक प्रभाव नहीं होता यानि कि आपके पास इतनी अधिक स्थिरता होती है कि कितनी भी असफलताओं के बाद भी आप उसी तरह प्रयास करते है जैसे कि आप पहली बार कर रहे हैं। आपके मनोवृत्ति इतनी जटिल हो जाती है कि उसे कोई भी प्रभावित नहीं कर सकता आपका ध्यान सिर्फ आपके लक्ष्य पर होता है। सफ़लता असफ़लता दुनिया को दिखाने के लिए है आपका असली लक्ष्य क्या है आपको उसकी तरफ बढ़ना चाहिए। एक ऐसी अवस्था जब आपका मन सफ़लता और असफलता को समान्य रूप से देखता है। समथवम, सफलता और असफलता दोनों में समानता।
अंतिम विचार :
वेदों हमे सालों से अपने ज्ञान से सिंचित करते आए है दुर्भाग्य से हमारा अधिकतर ज्ञान भण्डार या तो आक्रमणकारियों द्वारा नष्ट कर दिया गया या लूट लिया गया इसके बावजूद भी वेद हमे सफल जीवन जीने की पूरी विधि प्रदान करते हैं।
आप किसी भी धर्म विशेष से ताल्लुक रखते हों आपको एक बार सभी वेदों को अवश्य पढ़ना चाहिए वेद पढ़ने के बाद आपके जीवन की रूप रेखा किस तरह बदलती है यह वाकई देखने लायक होगा।
अर्थात सिर्फ वेद पढ़ने से ही नहीं उन्हें अपने मन पर अम्ल करने से प्रभाव होगा। जैसा कि लेख के शुरुआत में कहा था कि ज्ञान सिर्फ ज्ञानी लोगों के पास आता है अर्थात आप वेद का अध्यन बेशक करे लेकिन आपके पास उसे समझने की काबिलियत होनी चाहिए।
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