प्रेम कहानियां बड़ी रोमांचक और दिलचस्प होती है । प्रेम के बिना जीवन निरर्थक है, बिना प्रेम के जीवन की सार्थकता खत्म हो जाती है। प्रेम कहानी के बिना कोई भी कहानी, फिल्म या महाकाव्य अधूरा ही है। 

महाभारतकालीन समय में भी प्रेम कहानियों का बोल बाला था। देवताओं ने भी प्रेम किया, और प्रेम की हर चुनौती पर खरे उतरे। यदि आपने महाभारत ने पढ़ा है, तो आप 

 में हुए इस आश्चर्यजनक युद्ध से वाकिफ़ होंगे, लेकिन बीच बीच में कुछ ऐसे घटनाक्रम है जो ना सिर्फ दिलचस्प है बल्कि आपको भीतर से झंझकोर देने वाले थे। महाभारत की ऐसी पेचीदगियों में से, कई सुंदर प्रेम कहानियां, महाभारत के सबसे महत्वपूर्ण पहलुओं में से एक हैं। 

आज हम महाभारत की जिन प्रेम कहानियो से अवगत कराने जा रहे हैं। उनमे से कुछ काफी लोकप्रिय है, जिनके बारे में शायद आप पहले से ही जानते होंगे लेकिन कुछ प्रेम कहानियां ऐसी भी है जो बड़ी दिलचस्प है और अधिकतर लोगों से अनजान है। 

अर्जुन और उलूपी की प्रेम कहानी 

अर्जुन और उलूपी की प्रेम कहानी 

अर्जुन की चार पत्नियां थी जिसमें द्रौपदी भी शामिल है। उनकी चार पत्नियों में से उलूपी दूसरी थी। उलूपी और अर्जुन की प्रेम कहानी बड़ी ही रोमांचक और दिलचस्प है। 

जब अर्जुन अज्ञातवास काट रहे थे उसी दौरान जंगल में उलूपी ने जबरन अर्जुन का अपहरण कर लिया था। उलूपी को अर्जुन से प्रेम हो गया था, बाद में उसने अर्जुन से शादी की, जिससे उन्हें एक पुत्र हुआ जिसका नाम इरावन था। 

उलूपी एक नागकन्या नागा राजकुमारी थी, जिसका आधा शरीर नाग का और आधा इंसानो का था। उलूपी ने अर्जुन को वरदान दिया कि सम्पूर्ण जल साम्राज्य उसकी बात मानेगा और अर्जुन को पानी के भीतर कोई पराजित नहीं कर पाएगा। 

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कृष्ण और रुक्मिणी

अधिकतर कहानियों में कृष्ण और राधा का प्रेम बताया गया है। जहां श्री कृष्ण को एक गोपी राधा से प्यार हो जाता है। लेकिन वेदों में राधा का कोई जिक्र नहीं है। वेदों में यह बात स्पष्ट बतायी गयी कि कृष्ण की 7 पत्नियों में से एक रुक्मणी उनकी प्रिय पत्नि थी।  

कृष्ण और रुक्मणी की प्रेम कहानी बड़ी रोमांचक और दिलचस्प है क्योंकि कृष्ण को रुक्मणी से प्यार हो गया और रुक्मणी के माता पिता इसके खिलाफ थे जबकि रुक्मिणी भी श्री कृष्ण से प्यार करती थी। 

दोनों ने फैसला लिया और घरवालों के विरुद्ध कृष्ण रुक्मणी को अपने साथ भगा ले आए और उनसे शादी रचाई। कुछ विद्वान लोग रुक्मिणी को देवी लक्ष्मी का अवतार मानते हैं। 

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गंगा और शांतनु 

गंगा और शांतनु 

शान्तनु अर्थात्‌  हस्तिनापुर कुरु के राजा ।एक बार वे जंगल के भ्रमण के लिए निकले तो उन्हें गंगा नदी के किनारे सफेद वस्त्रों में एक बेहद सुन्दर लड़की दिखाई पड़ी ।वह लड़की इतनी ज्यादा खूबसूरत थी कि राजा से रहा नहीं गया और उन्हें उससे प्यार हो गया। 

और उसके बाद उन्होंने उस लड़की से शादी का प्रस्ताव रखा। लड़की ने कहा शादी तो वो कर लेगी लेकिन, वह उनसे एक वादा करे कि वह जो कुछ भी, उसके लिए उससे कोई सवाल नहीं पूछा जाएगा ना उसे रोका जाएगा। 

इस बात पर राजा हैरानी में पढ़ गए और उन्होंने सोच विचार करके उसकी यह शर्त मान ली। दोनों की शादी हुयी, लेकिन शादी के बाद जब उन्हें कोई भी पुत्र या पुत्री होती तो वह उनको गंगा नदी में डाल देती और इस प्रकार गंगा ने 7 पुत्रों को नदी में डाल दिया। राजा अपनी शर्त से बंधे हुए उससे कुछ नहीं कह पाते और दुःख से परेशान रहते। 

लेकिन जब उन्हें आठवां पुत्र हुआ तो राजा शांतनु से दुःख सहन नहीं हुआ और उन्होंने अपनी शर्त तोड़ कर उससे पूछ ही लिया कि वो ऐसा क्यों कर रहीं हैं? वादा तोड़ने के कारण गंगा उस पुत्र के साथ गायब हो गयी लेकिन जाते जाते गंगा ने शांतनु से वादा किया कि वह उनका यह बेटा सही समय आने पर लौटा देगी। इस प्रकार कुल 18 साल बाद राजा का अपने आठवें पुत्र से मिलन हुआ। यह कोई और नहीं बल्कि भीष्म पितामह थे। 

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भीम और हिडिंबी 

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भीम के पास आपार बल था और जब वे कौरवों द्वारा लक्षग्रह की योजना से बच निकले, तब पांडव जंगल में पहुँचे। पांडव जिस जंगल में पहुंचे थे, वहां पहले से ही राक्षसी लोगों का राज था और राक्षसों ने पांडवों को खाने की योजना बनाई। राक्षसों का सरताज हिडिम्बा था जिसकी एक बहन थी हिडिंबी । 

हिडिम्बा ने सबसे पहले भीम को खतम करने का निश्चय किया क्योंकि वही सबसे बलवान नजर आ रहे थे। उसने अपनी बहन को भेजा, ताकि वो भीम को आकर्षित करके अपने जाल में फसा सके। लेकिन हिडिंबी को पहली नजर में ही भीम से प्रेम हो गया, और उसने सारी सच्चाई भीम को बता दी।

 हिडिंबी के मुहँ से सच सुनकर भीम आग बाबूला हो गए और उन्होंने पूरे हिडिंबी के भाई को मार डाला बाद में वे हिडिंबी को भी मारने वाले थे लेकिन युधिष्ठिर ने उन्हें यह पाप करने से रोक दिया। हिडिंबी ने अपना पूरा दुख कुंती को सुनाया और कहा कि वो भीम से प्रेम करती है। कुंती ने भीम को उससे विवाह करने का आदेश दिया। 

लेकिन भीम ने एक शादी से पहले एक शर्त रखी उन्होंने कहा कि वे हिडिंबी से शादी तो कर लेंगे लेकिन उसके साथ तभी तक रहेंगे जब तक उनको एक पुत्र नहीं हो जाता और हिडिंबी ने इस शर्त को मान लिया दोनों की शादी हुयी और कुछ समय बाद उन्हें पुत्र की प्राप्ति हुयी। 

उनका पुत्र बेहद बलशाली और तेजस्वी था जिसका नाम घटोत्कच रखा गया बाद में भीम ने दोनों को छोड़ दिया। महाभारत युद्ध में पांडवों की तरफ से घटोत्कच ने युद्ध में बहुत तबाही की और कौरवों को नुकसान पहुंचाया लेकिन इसी युद्ध में वह वीरगति को प्राप्त हुआ। 

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पांडव और द्रौपदी 

द्रौपदी के पाँच पति थे यह सब जानते है लेकिन कम ही लोग यह जानते है कि द्रौपदी अधिक प्रेम किस से करती थी। और द्रौपदी को अधिक प्रेम कौन करता था। असल में द्रौपदी सिर्फ अर्जुन से प्रेम करती थी, लेकिन अर्जुन सुभद्रा से प्रेम करते थे। भीम द्रौपदी से मन ही मन प्रेम करते थे। 

यह भीम ही था जो द्रौपदी से सच्चा प्यार करता था और उसकी सभी मांगों को पूरा करने की कोशिश करता था।  सहदेव और नकुल ने केवल युधिष्ठिर की आज्ञा का पालन किया। लेकिन द्रौपदी युधिष्ठिर से अधिक हिल मिल गयी थी। 

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अर्जुन और सुभद्रा

अर्जुन और सुभद्रा जब पहली बार मिले थे तभी से ये दोनों ही एक दूसरे की तरफ आकर्षित थे। बाद में सुभद्रा और अर्जुन को एक दूसरे से प्रेम हो गया। लेकिन समस्या तब आती है जब सुभद्रा की शादी दुर्योधन से होने वाली थी, और उस समय सुभद्रा के सौतेले भाई कृष्ण ने ये बात भांप ली और अर्जुन और सुभद्रा को भगा दिया। बाद में दोनों ने शादी कर ली। शादी के बाद अर्जुन और सुभद्रा के एक बेटा हुआ, जिसे हम अभिमन्यु के नाम से जानते हैं।

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गांधारी और धृतराष्ट्र

गांधारी को पतिव्रता होने का प्रतीक माना जाता था। उन्होंने हस्तिनापुर के राजा धृतराष्ट्र से विवाह किया जो अंधे थे। लेकिन उन्होंने जैसे ही उनसे विवाह किया उसी दिन से अपनी आँखों पर काली पट्टी बाँध ली और ताउम्र अंधी रहीं। धृतराष्ट्र और गांधारी के 100 पुत्र थे जिनमे दुर्योधन सबसे बड़ा था। 

पाराशर ऋषि और सत्यवती

पाराशर ऋषि और सत्यवती

सत्यवती की सुंदरता इतनी अधिक थी कि कोई भी उसके रूप से मोहित हो सकता था। एक बार महर्षि पाराशर नदी पार करने के लिए निकले तब उन्होंने सत्यवती को देखा जो उन्हें नदी पार कराने वाली थी। पाराशर ऋषि ने सत्यवती से कहा कि वह उन्हें उनकी वासना को शांत करने का मौका दे, इसपर सत्यवती ने उनका हाथ पकड़ लिया और बोली कि अभी धैर्य  रखिए और नदी पार करने के बाद आप अपनी वासना संतुष्ट कर सकते हैं। 

जैसे ही नदी पार हुयी तो सत्यवती ने पाराशर ऋषि से कुछ शर्त रखी, उसने कहा कि वह उनकी वासना तभी तृप्त करेगी जब वे उन्हें कुछ वरदान देंगे और उसने कहा कि आप एक ऋषि है और आप किसी ऐसी स्त्री के साथ सम्भोग करे जिसमें से मछली की दुर्गंध आ रहीं हो यह आपको शोभा नहीं देता इसलिए सबसे पहले आप मेरे शरीर की इस दुर्गंध को समाप्त करे और ऋषि ने वैसा ही किया, फिर उसने कहा कि वे कुछ ऐसा करे कि दिन में भी कोई और उन्हें संभोग की अवस्था में ना देख सके इसके बाद ऋषि ने वहां सफेद बादल पैदा कर दिए। 

और तीसरी बार सत्यवती ने कहा कि सम्भोग के बाद भी उसका कौमार्य (वर्जिनिटी) खत्म नहीं होनी चाहिए और ऋषि ने कहा कि एक पुत्र की प्राप्ति के बाद उसका कौमार्य उसे वापस प्राप्त हो जाएगा। इसके बाद उन्होंने संभोग करके अपनी वासना मिटाई। बाद में सत्यवती को एक पुत्र हुआ जिन्हें हम व्यास के नाम से जानते है और उन्होंने ही महाभारत लिखी। 

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अर्जुन और चित्रांगदा

अर्जुन और चित्रांगदा

चित्रांगदा बेहद सुन्दर थी और वे मणिपुर की राजकुमारी थी। उन दोनों का मिलन कावेरी नदी के तट पर हुआ और उन्हें एक दूसरे से प्रेम हो गया। बाद में अर्जुन ने जब उनके पिता से उनका हाथ माँगा तो उन्होंने अर्जुन के सामने एक शर्त रखी उन्होंने कहा कि अर्जुन और उनकी बेटी का पुत्र मणिपुर का उत्तराधिकारी बनेगा और अर्जुन मान गए। दोनों की शादी हुयी और उन्हें एक पुत्र प्राप्ति हुयी। 

अर्जुन और चित्रांगदा को बभ्रुवाहन नाम का एक पुत्र हुआ इसके बाद अर्जुन उन दोनों को छोड़ कर इंद्रप्रस्थ आ गए। उनका पुत्र मणिपुर के सिंहासन पर बैठा। बब्रुवाहन मणिपुर का राजा बना और यहां तक ​​कि एक युद्ध में उसने अपने पिता को भी पराजित किया।

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शांतनु और सत्यवती 

शांतनु और सत्यवती 

शान्तनु और सत्यवती की मुलाकात जंगल में हुयी जहां वे शिकार करने के लिए गए थे। असल में उन्हें सत्यवती की सुगंध ने प्रभावित किया जो कि कस्तूरी थी। इस सुगंध का पीछा करते हुए जब वे आगे गए तो उन्होंने सत्यवती को अपनी नाव में पाया और उन्होंने उससे उन्हें नदी पार कराने को कहा इसी बीच उन्होंने अपनी इच्छा सत्यवती को बतायी। और उसके बाद प्रेम का सिलसिला चलता रहा। 

बाद में सत्यवती ने उनसे कहा कि वे उसके पिता से हांथ मांगे। जब शान्तनु सत्यवती का हाथ मांगने गए तो सत्यवती के पिता ने शर्त रखी कि सत्यवती से होने वाला पुत्र सिंहासन का उत्तराधिकारी बनेगा और यह  शांतनु ने अपने पुत्र देवरथ के कारण कुरु के सिंहासन से इनकार कर दिया और इसलिए वह उससे शादी किए बिना लौट आया।  जब पुत्र देवरथ लौटा, तो उसने सत्यवती के पिता को विवाह के लिए राजी कर लिया।

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By Nihal chauhan

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